पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१८९

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१८२ बीजगणिते - ८ धात ३ हुआ, इसीप्रकार दूसरे कनिष्ठ १ और पहिले ज्येष्ठ ३ इन का बात ३ हुआ, इन दोनों घातों का योग ६ कनिष्टपद हुआ | दोनों क निष्ठों १ | १ का घात १ हुआ, इस को प्रकृति = से गुणने से हुआ, इस में दोनों ज्येष्ठ ३ | ३ के घात ६ को जोड़ने से १७ ज्येष्ठपद हुआ। दोनों क्षेपों १ । १ का वातं १ क्षेप हुआ। अब पहिले सिद्ध किये हुए कनिष्ठ १ ज्येष्ठ ३ और क्षेप १ इन को कनिष्ठ ६ ज्येष्ठ १७ और क्षेप १ इन के साथ भावना के लिये न्यास । क १ ज्ये ३ क्षे १ यहां पहिले क ६ ज्ये १७ क्षे १ कनिष्ठ १ और दूसरे ज्येष्ठ १७ इन का घात १७ हुआ, इसी प्रकार दूसरे कनिष्ठ ६ और पहिले ज्येष्ठ ३ इन का घात १८ हुआ, इन दोनों घातों का योग ३५ कनिष्ठपद हुआ | कनिष्ठ १ । ६ के वात ६ को प्र- कृति ८ से गुणने से ४८ हुआ, इस में ज्येष्ठ ३ | १७ के घात ५.१ को जोड़ने से १६ ज्येष्ठपद हुआ। और अपों १ । १ का घात १ क्षेप हुआ | इसप्रकार भावनावश से अनेक कनिष्ठ, ज्येष्ठ और क्षेप होंगे | ( २ ) उदाहरण ---- यह कौनसा वर्ग है जिसे ग्यारह से गुण देते हैं और उसमें एक जोड़ देते हैं तो वर्ग होता है । न्यास | प्र ११ । क्षे १ । यहां कनिष्ठ १ कल्पना करके उसका वर्ग किया १ हुआ इसे प्रकृति ११ से गुणने से ११ हुआ!, इस में २ घटादेने से शेष रहा, इसका मूल ज्येष्ठ ३ हुआ। अब तुल्य भावना के लिये न्यास | प्र ११ क १ ज्ये ३ क्षे रं यहां ३३ } क ज्ये ३ क्षे ज्येष्ठ और कनिष्ठों के वज्राभ्यास ३ | ३ हुए, इन का ऐक्य ६ कनिष्ट हुआ। और कनिष्ठों १ । १ के घात १ को प्रकृति ११ से गुणकर उस में ज्येष्ठान्यास ६ जोड़ देने से २० ज्येष्ठपद हुआ । क्षेपोंं । २ । का से