पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१७४

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K वर्गप्रकृतिः । कहते हैं-- ज्येष्ठ और लघु इनको जो वज्राभ्यास अर्थात् तिर्यग्गुणन् उन का योग हस्व होता है, तात्पर्य यह हैं कि ऊपर की पङ्क्तिवाले क निष्ट से नीचली पङ्क्तिचाले ज्येष्ठ को गुण दी और नीचली पङ्क्ति वाले कनिष्ट से ऊपर की पक्किवाले ज्येष्ठ को गुण दो बाद उन दोनों गुणनफलों का योग करो वह कनिष्ठ होगा | कनिष्ठों के घात को प्रकृति से गुण दो और उसमें ज्येष्ठों के घात को जड़ दो बह ज्येष्ठमूल होगा | और क्षेपकों का घात क्षेप होगा || अब पदों के लघुत्व जानने के लिये अन्तरभावना को कहते हैं --- ज्येष्ठ और कनिष्ठ इनके वज्राभ्यास का जो अन्तर वह कनिष्ठ होगा | कनिष्ठों के घात को प्रकृति गुणकर एक स्थानमें रखो और केवल ज्येष्ठों का घात करो बाद उन दोनों घातों का अन्तर करो वह ज्येष्ठ मूल होगा । और समालभावना के तुल्य क्षेपों का घरत यहां भी क्षेपही होगा || इटवर्गहतः क्षेपः क्षेपः स्यादिष्टभाजिते । मूले ते स्तोऽथवा क्षेपः क्षुषः क्षुषे तदा पढ़े ॥ १४ ॥ एवं भावनाभ्यामिश्क्षेपजपदसिद्धौ तेभ्य एव क्षेपान्तरजपदान- यनमथ च यत्र कुत्रापि क्षेपे पदसिद्धौ स चेदिष्टवर्गेण गुणितो भक्तो वा उद्दिष्टक्षेपो भवेत्तदा तेभ्य एवोद्दिवृक्षेप जपदानयन मनुष्टुभाइ इष्ट- वर्गहत इति । यत्र क्षेपेक निष्ठज्येष्ठ सिद्धे सक्षेप इष्टस्य वर्गेण भक्तः सन् यदि क्षेपो भवेत् तदा ते पदे इष्टभक्ने सती पदे स्तः । यदि विष्टवर्मेण गुणितः सन् क्षेपो भवेत् तदा ते पदे इष्टरितेपदे स्तः | यस्य इष्टस्य वर्गण क्षेपो गुणितस्तेन पदे गुरणनीये इत्यर्थः || विशेष... जिस क्षेप में कनिष्ठ और ज्येष्ठ पद सिद्ध हुए हैं सो क्षेप यदि इष्ट वर्ग के भाग देने से अभिमतक्षेप होय तो कनिष्ठ ज्येष्ट पद इष्ट के भाग देने से अभिमत कनिष्ठ ज्येष्ठ पद होंगे, और यदि क्षेप इष्ट वर्ग से गुणित क्षेत्र होय तो कनिष्ठ ज्येष्ठ पद इष्ट से गुण देने से कनिष्ठ ज्येष्ठ पद होंगे ||