पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१६९

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बीजगणिते- दशाहतः स्यादिहतस्त्रिपष्टया चतुर्दशाग्रो वद राशिमेनम् ॥ २७ ॥ गुणैक्यं भाज्यः | अक्यं शुद्धिः । न्यासः । भाज्यः १५ । हारः ६३ | क्षेपः २१ | पूर्व- वजातो | गुणः १४ अयमेव राशि: । इति कुट्टकः । १६२ उदाहरण--- वह कौन सा राशि है जिसको पांच से गुणकर तिरेसठका भाग देते हैं तो सात शेष रहता है और उसी राशि को दससे गुणकर तिरसठका भाग देते हैं तो चौदह शेष रहता है । यहां ५ | १० इन गुणकोंके ऐक्य १५ को भाग्य और ७।१४ इन शेषों के ऐक्य को २१ ऋणक्षेप मानकर कुट्टकके लिये न्यास करते हैं | भाज्य= १५ । क्षेप = २१ । हार = ६३ । • • इन में तीन का अपवर्तन देने से दृढ भाग्य हार और क्षेत्र हुए | दृ. भा. ५ | ह क्षे, ७ । • बच्ची हुई दृ. हा. २१ । उक्त रीति से लब्धि गुण हुए अपने अपने हारों से तष्ठित करने से हुए | अब ऋणक्षेप होने के कारण अपने अपने हारों में से घटाने से ऋणक्षेप में लब्धि गुण हुए ३ गुण राशि १४ को ५ से गुणने से ७२ हुए इनमें हर ६३ का भाग देने से १ लब्धि