पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१६८

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संश्लिष्ट कुट्टक को प्रकार --- यदि हर एक हो और गुण अनेक हो तो उन गुणकों के ऐक्य को भाज्य और शेषों के ऐक्य को ऋणक्षेप कल्पनाकरके कहे हुए अनुसार जो कुडक किया जाता है वह संश्लिष्ट कुक है | प्रकार के उपपति--- गुणगुणित और युक्त कोई राशि, गुणयोगगुणित उसी राशि के तुल्य होता है। और वहां अलग अलग हर से भागो हुई लब्धियों का योग अथवा हरसे भागा हुआ योग, ये भी समान होते हैं । जैसा-- राशि १० को २, ३ और ४ गुणकों से अलग २ गुण देने से हुए २० ॥ ३० । ४० | इन में हर १२ का भाग देने से १/१/२ लब्धि ई और १ । ११ । २ ये शेष रहे । अथवा पूर्वराशि १० को २ १३ १४ गुणकों के योग ९ से गुण देने से ८० हुए अब इन में हर १२ का भाग देने से ४ और शेष १४ रहा । आई यहाँ १ । १ । २ इन लब्धियों के योग ४ के समान ४ लब्ध आये हैं और १ । ११ । २ इन शेषों के योग १४ के है इसलिये उद्दिष्ट राशि १० गुणक योग ६ से योग १४ से ऊन ७६ हेर १६ से भागा हुआ कविधि के अनुसार गुणही राशि सिद्ध हुआ । गुणको विभिन्नौ-' यह सूत्र उपपन्न हुआ । उदाहरणम् - कः पञ्चनिघ्नो वितस्त्रिषष्ट्या सप्तावशेषोऽथ स एव राशिः । " समान शेष १४ रहा गुणित ६० और शेष निःशेष होता है यो कु- इससे 'एको हरश्चेद् अ ज्ञानराजदेवशा:- सप्ताहतः सूर्यहतः शरामः पश्चाहतः सूर्येतो यामः । तमेव राशि वद अस्मिन्सलिष्टसंज्ञेवता सहिरो ||