पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१६६

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१५६ अन इसीप्रकार, कल्प के सौरदिन में कल्प मिलते हैं तो इष्ट सौर दिन में क्या, यो अनुपात करने से कल्प के अधिमास इष्ट सौर से गुणे जाते हैं और कल्प के सौर दिन से भागे जाते हैं वहां लब्ध इष्ट- अधिमास आते हैं और शेष अधिमास शेष बचता है इसलिये किस गु से गुणित अधिमाशेष से रहित और कल्प के सौर दिन से भागे हुए कल्पाधिमास नि:शेष होंगे यह कुछक का विषय उपस्थित हुआ, यहां जो गुण आवेगा वही इष्ट सौर दिन होंगे और जो लब्धि होगी वही गाधि- मास | इसीभांति कल्पचान्द्र दिनमें कल्प के अवम मिलते इष्टचान्द्र दिन में क्या, यो अनुपात करने से कल्प के व्यवमदिन इष्टचान्द्र दिन से गुणे जाते हैं और कल्प के चान्द्र दिन से भागेजाते हैं वहां लब्ध गत अबम आते हैं और शेष अवमशेष रहता है इसलिये किस गुण से गुणित अवशेष से रहित और कल्प के चान्द्र दिन से भागे हुए कल्पावम निःशेष होंगे यों कुक की रीति से लब्धिगत अवम और गुण इष्टचान्द्र दिन सिद्ध होते हैं । इसप्रकार ' कल्प्याथ शुद्धिः - ' यह विधि उपपन्न हुआ || अथ संश्लिष्टकुट्टके करणसूत्रं वृत्तम् । एको हरश्चेद्गुणको विभिन्नौ तदा गुणैक्यं परिकल्प्य भाज्यम् | अग्रैक्मत्रं कृत उक्तवद्यः संश्लिष्टसंज्ञः स्फुटकुट्टकोऽसौ ॥ ३६ || १ अत्र श्रीवासुदेवपादाः- अन्योन्यामाहतयोर्गुणयोः संश्लिष्टकुट्टके यत्र | वियुतिर्हरेण भक्का न निरस्याखिलं तदुद्दिष्टम् || ● कः पचनिघ्नः --- ' इस उदाहरण में ५ गुण से दस के अम १४ को गुणने से ७० हुए और १० गुणसे पांच के अम ७ को गुणने से ७० हुए इनका अंन्तर ० हुआ यह हर ६३ का भाग देने से शुद्ध होता है इसलिये यह उदाहरण शुद्ध है |