पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१६२

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C १५५ एवं ४२८७६ अनेनैव कालकमानेनोत्थापितामेदं का १६ रु १४ जातो विकलात्मको ग्रहः ६८६०७८ अतो राश्यादिः ६|१०|३४|३८ । एवमिष्टषशादनेकथा || ग्रह के विकलाशेष पर से ग्रह का और अहर्गण का साधन करते हैं -- यहां साठ भाज्य, कुदिन हार, और विकलाशेष ऋण क्षेप है तो विकला लब्धि और कलाशेष गुण होगा | . फिर साठ भाज्य, कुदिन हार, और कलाशेष ऋणक्षेप है तो कला लब्धि और भागशेष गुण होगा ।. फिर तीस भाज्य, कुदिन हार, और भागशेष ऋणक्षेप है तो भाग लब्धि और राशिशेष गुण होगा । फिर बारह भाज्य, कुदिन हार, और राशिशेष ऋणक्षेप है तो राशि- लब्धि और भगणशेष गुण होगा । फिर कल्प के ग्रह भगण भाज्य, कुदिनहार, और भगण शेष ऋण - क्षेप है तो गतभगण लब्धि और अहर्गण गुण होगा। इसभांति कल्प के अधिमास भाज्य, रविदिन हार और अधिमास शेष ऋणक्षेप है तो गताविमास लब्धि और गत रविदिन गुण होगा । फिर कल्प के अवमदिन भाग्य, चान्द्रदिन हार, और अमरोष ऋण- क्षेप है तो गतावम लब्धि और गतचान्द्र दिन गुण होगा । अब छात्र जनोंके बोधके लिये कल्प कुदिन १६, कल्पग्रह भगण ६ और अहर्गण १३ कल्पना करके उक्त बात को दर्शाते हैं - कल्प के कुदिन में कल्प के ग्रह भगण मिलते हैं तो इष्ट कुदिन ( अहर्ग ) में क्या, इस भांति अनुपात द्वारा ‘युचरचऋहतो दिनसंचयः कहहुतो भगणादिफलंग्रहः- इस प्रकार के अनुसार ग्रह सिद्ध किये जाते हैं। प्रकृत में अहर्गण १३ को भगण ६ से गुणने से ११७ हुए इनमें कुदिन १६ का भाग देने से ग्रह भगण ६ लब्ध मिले भगण शेष ३ अवशिष्ट रहा, इसको १२ से गुणनेसे