पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१५०

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उदाहरण- वह कौनसा गुण है जिससे अठारह को गुणकर दस जोड़ वा घटा देते हैं और ऋण ग्यारहका भाग देते हैं तो निरग्र होता है | गुण हुए, और १ १ १० न्यास | भाज्य = १८ | हार = ११ | क्षेप = १० । उक्त प्रकार से वल्ली उत्पन्न बाद दो राशि हुए : तष्टित करने से हुए १८ भाज्य हार और क्षेप इन तीनों के धन होने से १३ ये लब्धि हारमात्र के ऋण होने से भी वहीं सब्धि गुण हुए किंतु लब्धिमात्र का ऋणत्व होगा क्योंकि 'भागहारेऽपि चैवं निरुक्तम् ' यह कहा है । इसभांति ऋणहार में लब्धि गुण हुए अब ऋणक्षेप में ० 'योगजे लक्षणाच्छुद्धे --' इस प्रकार से लंब्धि गुण हुए हैं यहां हार धन हो वा ऋण पर लब्धि गुण वही होंगे और हार के ऋण होने से लब्धि ऋण होगी। यहां सर्वत्र ॠणत्व के निमित्त अपने अपने क्षणों में जो शोधन कहा है सो तभी जानो यदि भाज्य क्षेत्रों के बीच में कोई एक ऋण हो और लब्धि को भी ऋण तभी जानो यदि भाज्य भाजकों के बीच में कोई सा ऋण हो || हुई १ १ कई एक लोग ' ऋणभाज्योद्भवे लद्वद्भवेत्तामृणभाजके ? ऐसा पाठ क ल्पना करके भाजक के ऋण होनेपर भी शोधन करते हैं सो ठीक नहीं प्रतीत होता, जैसा इस उदाहरण में तीनों के धन होने से लब्धि गुण हुए और हारमात्र के ऋण होने से अपने अपने तक्षणों में शोधन किया तो लब्धि गुण हुएई आलाप --भाज्य १८ को गुण ३ से. गुणन करने से ५४ हुआ इस में क्षेप १० जोड़ने से ६४ हुआ अब ऋणहार ग्यारह का भाग देने से ५ लब्धि भाई और शेष रहा इसलिये यह असत् हुआ | उदाहरणम् - येन संगुणिताः पञ्च त्रयोविंशतिसंयुताः ।