पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१४९

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१४२ बीजगणिते - भाज्य= १= हार = ११ और क्षेत्र = १० हैं। उक रीति से वल्ली हुई इससे दो राशि हुए ५: इन्हें तष्ठित करने से यहां पर भाग्य १८ को गुण से गुणने से १४४ हुआ इसमें क्षेप १० जोड़ने से १३४ हुआ अब इसमें हार ११ का भाग देने से १२ आई और २ शेष रहा, इस भांति अनुक्त भी बुद्धिमान् लोग जानते हैं। यहां पर हार के ऋण होने से समलब्धि में और भाग्य के ऋण होने से विषम लब्धि में प्राचीन रीतिसे लब्धि गुण व्यभिचरित होते हैं || उदाहरणम्-


अष्टादश हताः केन दशाढ्या वा दशोनिताः | शुद्धं भागं प्रयच्छन्ति क्षयगेकादशोद्धताः ॥ २५ ॥ न्यासः | भाज्यः १८ । क्षेपः १० । हारः ११ । भाजकस्य घनत्वं प्रकल्प्य साधितौलब्धि- गुणौ १४ एतावेव ऋणभाजके । किंतु लब्धेः पूर्ववह एत्वं ज्ञेयम् । तथाकृते जातौ लब्धिगुणौ । ऋण- क्षेपे तु 'योगजे तक्षणाच्छुद्धे -' इत्यादिना लब्धि- गुणौ ३ भाजकस्य घनत्वे ॠणत्वे वा लब्धिगुणा- वेतावेव, परंतु भाजके भाज्ये वा ऋणगते लब्धेः ऋत्वं सर्वत्र ज्ञेयम् ||