१४० बीजगणिते- रीति से गुण लब्धि सिद्धकरो वे धन क्षेप में होंगी और उन्हें अपने २ दृढ भाज्यहारों में शुद्ध करके ऋण क्षेप में लाओ । - इसभांति ऋण भाज्य में निष्प्रयास कुटुककी सिद्धि होनेपर भी पूर्व प्रा चार्यों ने वृथा पश्चिम किया है, सो कहते हैं ---- 'भाज्ये भाजके वा ऋण- गते परस्परभजनाल्लब्धयः ऋणगताः स्थाप्याः किं प्रयासेन ' इसका अर्थ- भाज्य अथवा भाजक के ऋणगत होने से उनके आपस में भाग देने से जो लब्धि आती हैं उन्हें ऋगत स्थापन अर्थात् उन सब लब्धियों के शिरपै बिन्दु देकर एक संकीर की भांति लिखो, ऐसा परिश्रम करनेका क्या प्रयोजन है क्योंकि उक्त बात की सिद्धि बड़ी सुगमता के साथ होती है। और प्रयासमात्रही नहीं है किंतु लब्धि में व्यभिचार भी आता जैसा- -- प्रकृत उदाहरण में भाज्य= ६० | ३ | 1 हार = १३ । उक्तविधि से बल्ली हुई + बाद दो राशि हुए ६९ तष्ठित करने से १५. लब्धि के विषम होने से अपने २ तक्षणों में शुद्ध करने से ऋण भाज्य म क्षेप में लब्धि गुण हुए ५१ Ž