पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भनर्णषडियम् जोड़ने का प्रकार -- धन अथवा ऋण जो दो राशि होवें उनका व्यक्तगतकी रीति से योग करो वहीं यहां योग होगा ! जो एक राशि धन हो और दूसरा ऋण तो भी व्यक्तगणित के प्रकार से उनका अन्तर करो और उसीको यहां पर योग जानो । यदि राशि करणी होवें तो 'योगं करण्योर्महती प्रकल्प्य -' इस वक्ष्यमाण (आगे जो कहाजायगा ) प्रकार से उनका योग और व्अन्तर करो। यहां शेष धन बचै तो धन और ऋण बचै तो ऋण जानो ॥ उपपत्ति - अ) ने ( क ) से तीन रुपये ऋण लिया, फिर चार रुपये ऋण लिया इस प्रकार ( अ ) ने सात रुपये ऋण लिया | फिर ( ) को तीन रुपये और चार रुपये इस प्रकार सात रुपये मिले परन्तु धन कुछ नहीं बचा, क्योंकि सात रुपये ऋण लिया था । अथ जो ( अ ) चार रुपये ऋणक और तीन रुपये अर्जन (पैदा ) करे तो उसके एक रुपया ऋण रहैगा । यदि चार रुपये अर्जन करे और तीन रुपये ऋणकरै तो अवश्य ही एकरुपया धंन रहैगा । इससे 'योगे युतिः-

--' यह सूत्र उपपन्न हुआ है

उदाहरणम्- रूपत्रयं रूपचतुष्टयं च क्षयं धनं वा सहितं वदाशु । स्वर्ण क्षयं स्वं च पृथक् पृथङ् मे धनर्णयोः संकलनामवैषि ॥ १ ॥ अत्र रूपाणामव्यक्तानां चाद्याक्षराण्युपलक्षणार्थ लेख्यानि यानि ऋणगतानि तान्यूर्ध्वविन्दनि च ॥ न्यासः । रू ३ रू ४ योगे जातम् रु ७ न्यासः । रू ३ रू ४ योगे जातम रू. ७