पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१५

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बीजगणिते - न्यासः । रू ३ रू ४ योगे जातम् रूपं न्यासः । रू ३ रू. ४ योगे जातम् रु १ एवं भिन्नेष्वपि इति घनर्णसंकलनी । उदाहरण- , + तीन ऋण, चार ऋण वा तीन धन चार धन, वा तीन धन चार ऋण, वा तीन ऋण और चार धन इनका योग अलग २ बतलाओ || यहां भली भांति मालूम पड़ने के लिये रूप और अव्यक्त के आदि के अक्षर लिखते हैं । जैसे 'रूप ' इसको रू और 'अव्यक्त राशि यावत्तावत् ' इत्यादिकों को या इत्यादि । ऋण राशिके मस्तकपर एक बिन्दु का चिह्न देते हैं। जैसा - रू १ | रूप उस राशि को कहते हैं कि जिसका मान ज्ञात ( मालूम ) हो और अव्यक्त राशि वह कहलाता है कि जिसका मान अज्ञात ( न मालूम ) हो । देखो कि रूई रू ४' इस पहिले उदाहरण में रूप तीन तथा रूप चार ऋण हैं इसलिये इनके शिरपैबिन्दु का चिह्न लगाया गया है। अब इन दोनों का योग उक्त प्रकार से रूप सात ऋण होता है रू ॐ ऐसाही आगे भी जानो ॥ , ( १ ) न्यास । रूई रू ४ | इनका योग रू ॐ हुआ । ( २ ) न्यास | रूं. ३ रू ४ । इनका योग रु ७ हुआ । ( ३ ) न्यास | रू ३ रू | इनका योग रू १ हुआ । ( ४ ) न्यास । रू ३ रू ४ । इनका योग रू १ हुआ । इसी प्रकार भिनाकों का भी योग कियाजाता है, परंतु वहां समच्छेद विधि का स्मरण रखना चाहिये | जोड़ने का प्रकार समाप्त हुआ । १ अत्रेदं पद्यं स्मरणीयम् - अखोरणीयान् महतो महीयानचिन्त्यमूलप्रकृतिप्रभावः । महेश्वरी वा ऋणरूपराशिर्विचारणीयो हृदि सांख्यविद्भिः ।