पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१३३

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१२६ बीजगणिते- अब यहां पहिला खण्ड गुणगुणित भाज्य का स्वरूप है गु. भा १ इसमें मुख्य क्षेप जोड़ कर हार का भाग देने से मुख्य लब्धि मिलनी चाहिये क्योंकि दूसरे पक्ष में हार का भाग देने से इष्ट और लब्धि की योगरूप इ १ ल १ मुख्य लब्धि आती है। इससे धनक्षेप में जो कहआये हैं वह उपपन्न हुआ । इसीभांति ऋणक्षेप में पहिले पक्ष इष्ट और हार के घात से हीन करने से भी समानही हैं- ..... गु. भा. १ क्षे १ इ. हा १=हा. ल १ इ. हा रं यहां पर पहिले के तुल्य क्रियाकरने से इष्टोन लब्धिरूपलब्धि आती है । इसलिये 'शुद्धौ तु वर्जिता -' यह उपपन्न हुआ। । अथवा क्षेपके दो खण्ड किये - एक आदि से गुणित हार के समान एक खण्ड, शेष के समान दूसरा खण्ड, यहां शेषके समान क्षेपमानकर जो गुण सिद्ध किया उससे गुणित शेषमित क्षेप से युक्त भाज्य में हार का भाग देने से शेष नहीं रहैगा किंतु क्षेप का पहिला खण्ड एक आदि गुणित हार के समान होनेसे इस क्षेपखण्ड में हार का भाग देने से क्षेपके तक्षण फल के समान लब्धि आती है उसे पहिली लब्धि में जोड़ देना चाहिये इससे भी वही बात सिद्धहुई । इसीभांति भाज्य क्षेप भी हार से तष्टित किये जाते हैं और वहांपर भी उक्त रीतिके अनुसार उपपत्ति जाननी चाहिये । जैसे क्षेपके दो खण्ड किये हैं वेसे भाज्यके भी दो खण्ड करो । भाज्य को तष्टित करने से जो लन्धि आवे उसे गुणसे गुणदों और क्षेपतक्षण फलसे संस्कृत ( युक्त हीन ) करो बाद उसका गणितागत लब्धि में संस्कार ( ऋण धन ) करो तो ब्र मुख्य लब्धि होगी परंतु यह बात आचार्य ने गौरव भयसे नहीं कहीं किंतु लाघव से 'भाज्याद्धतयुतोद्धृतात् ' यही कहा ॥..