पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१३४

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जिस स्थान में क्षेप नहीं हो वहां गुण शून्य होता है, उस शून्य गुण से भाज्य को गुणने से गुणनफल शून्य होता है और उसमें हारका भाग देने से लब्धि भी शून्यही आती है यह बात अति सुगम है | इसभांति हारका भाग देनेसे यदि क्षेप में निःशेषता हो तो भी गुण शून्यही होगा और उससे भाज्यको गुणने से गुणनफल शून्य होता है और वहां क्षेप के जोड़ने से हार का भाग देने से ' क्षेपो हारहृतः फलम् ' यही संपन्न होता है | इस सूत्र से और ‘ मिथो भजेत्तौ दृढभाज्यहारौ - इस सूत्र से गुण लब्धि के ज्ञान में नवाङ्कुरकारने लाघव दिखलाया है - जैसा- भाज्य= १०० | हार = ६३ | क्षेप = ३७ । उक्त प्रकार के अनुसार बल्ली हुई । १ इससे लब्धि गुण हुए ६६/६२ | [अथवा भाज्य १०० में हार ६३ का भाग देनेसे १ लब्धि आई और ३७ शेष रहा, अब इसका फिर भाज्य रूप हार ६३ में भाग देना चाहिये वहाँ हार ३७ से क्षेप ३७ नि:शेषहुआ और लब्धि १ मिली । पहिले की लब्धिही लब्धि है और दूसरी लब्धि क्षेप १ है उसके नीचे शून्य इसप्रकार बल्ली हुई । १ ० लब्धि गुण हुए १ । १ वल्ली विषम है इस लिये अपने अपने क्षण में घटाने से हुए १६ । ६२ ।