पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१२६

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. अपवर्तन देने से भाज्य १७ हार ३९ क्षेप १, उक्तविधि से ७ । १६ लब्धि गुण, घ्यब भाज्य १७ गुण १६ से गुणने से २७२ हुआ इसमें क्षेप १ जोड़ने से २७३ हार ३९ का भाग देने से ७ लब्धि हुई, यहां लब्धि ७ गुण १६ क्रम से १३ | ५ अपवर्ताङ्क से गुणदेने से ११ | ८० हुए इन्हें अपने अपने तक्षण १७ । १५ से तष्ठित करने से प्रकृत भाज्य हारसंबन्धी लब्धि गुण हुए ६ | ५ | अब भा १७ हा १५ क्षे ५ दृढ़ भाज्य हार और क्षेप हैं, यहां हार क्षेप में पांचका अपवर्तन देनेसे भाज्य १७ हार ३ और क्षेप १ हुआ | यहांपर भी उक्त प्रकार से ६।१ लब्धि गुण हुए, अब भ.ज्य १७ गुण १ से गुणने से १७ हुआ। इसमें क्षेप १. जोड़ने से १८ हार ३ का भाग देने से ६ लब्धि हुई, यहां गुण १ व्अपवर्ताङ्क ५ से गुणदेने से ५ हुआ इसभांति ६ । ५ ये दृढ भाज्य- हारोपन लब्धि गुण हुए | योगजे तक्षणाच्छुद्धे गुणाप्ती स्तो वियोगज़े | (धनभाज्योद्भवे तद्भवेतामृणभाज्यजे ॥ ) ऋण ऋणभाज्ये वा सति विशेषमनुष्टुभाह-योगजे इति । योगने धनक्षेपजे ये गुणाही ते स्वतक्षणाच्छुद्धे वियोमजे भवतः । गुणो दृहहराच्छुद्धः सन् लब्धिदृढभाज्याच्छुद्धा सती ऋण भवतीत्यर्थः । एवं धनभाज्योद्भवे गुणाशी लद्वत्स्वतक्षणा- च्छुद्धे ऋणभाज्य भवतः । अत्रोत्तरार्धे-- -- 6 , · ऋषभाज्योद्भवे तद्भवेतामृणभाज्य के ' इत्यपि पाठः कचिल्लभ्यते । तस्यायमर्थ :-- योगजे गुणाती स्वतक्षरमाच्छुद्धे वियोगजे भवतः । तद्हणभाज्योद्भवे भवतः | तद्ब्रहणभाजकेऽपि गुरणाप्ती भवतः क्षेपभाज्यहाराणामन्यतमे ऋणे सति पूर्वसिद्धे गुणाप्ती स्वतक्षणाच्छोध्ये इत्यर्थः । एवं द्वौ चेहण-