पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१२४

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· योज्यम् । युतिभाज्ययोः समपवर्तितयोधिरपवर्तनाङ्केन गुण्या, गुणस्तु यथागत एव | युविभाजकयोस्त्वपवर्तित योर्गुणोऽपवर्तनाङ्केन गुण्यः लब्धिर्यथागता वेत्यर्थ: । अत्र 'या' इत्यादिना व्याख्या- तोर्थो युक्तरोस्ति परं न तथायं शब्दलभ्यः | आचार्याणामपि नायमर्थोऽभिप्रेतः किंतु अथम एत्र | यतस्ते 'शतं हृतं येन युतं नवत्या -' इत्यादाहरणे वक्ष्यन्ति 'अत्र लब्धिर्न ग्राह्या गुणन भाज्ये क्षेषयुते हरभ लब्धिश्च' इति । द्रुतविलम्बितसमेतत् || प्रकारान्तरसे गुण लानेका विधि - अपवर्तन दिये हुए भाग्य क्षेपों परसे 'मिथो भजेत्तौ दृढमाज्यहारौ- इस कहे हुए कुडकविधि के अनुसार तुएं सिद्ध होता है और सब्धि अप- वर्तनाङ्क से गुणी हुई वास्तव होती है । अथवा, अपवर्तन के संभव होने परीवर्तन न देकर भाज्यक्षेपों पर से गुण है। भाज्यक्षेपों में अपवर्तन देकर उक्त कुकविधि से गुणआता है परंतु गुणगुणित क्षेत्रयुक्त भाज्य में हार का भागदेने से मिलेगी । अपवर्तन के संभव होनेपर हार और क्षेपमें अपवर्तन देकर उक्तविधि से गुण सिद्ध करी यह व्यपवर्ताक से गुणाहुआ वास्तव होगा और लब्धि जैसी आती है नही वास्तव है || उपपत्ति- गुणगुणित भाज्य क्षेपयुत और हारलब्धि का घात ये दो पक्ष तुल्य होते हैं - गु. भा १ क्षे १ = हा. ल १ | ये किसी इष्ट से गुऐ हुए भी तुल्य हैं इ. गु. भा १ इ. क्षे १=इ. हा. ल १ । यहां यदि इष्टगुणित भाज्य भाज्य, इष्टगुणित क्षेप क्षेप, और केवल हार हार कल्पना करें तो लब्धिको इष्ट- गुणित होना उचित है क्योंकि दूसरे पक्ष में हार का भाग देने से इष्ट- गुणित लब्धि फल है । अथवा, इष्टगुणित गुण गुण, केवल भाज्य भाज्य, इष्टगुणित क्षेप क्षेप, और इष्टगुणित हार हार कल्पना करने से