पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/११९

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११२ बीजगणिते - क्योंकि भाज्यके दूसरे खण्ड १ को क्षेप ३ से गुणदेने से ३ हुए इनमें 0 ऋणक्षेप ३ घटा देने से शून्य शेषरहा इसमें हार ४ का भाग देने से शून्य लब्धि आती है। इससे 'मिथो भजेत्तौ दृढभाज्यहारौ यावद्विभाज्ये भवतीह रूपम् । फलान्यधोधस्तदधो निवेश्यः क्षेपस्तथान्त्ये खं - ' यह बल्ली उत्पन्न होती है। क्षेपके समान उपान्तिम कहिये अन्तके समीप वाले ३ से उसके ऊपरवाले २ को गुणने से ६ हुए, इनमें अन्त्य • जोड़ने से ६ लब्धि. हुई । और गुण क्षेप ३ के समान हैं | आलाप भाज्य ९ गुण ३ से गुणनेसे २७ हुआ, इसमें क्षेप ३ घटानेसे शेष २४ रहा इसमें हार ४ का भाग देनेसे वही निःशेष लब्धि ६ हुई । इसी क्षेप ३ परसे तीसरे भाज्यमें गुण का विचार करते हैं - यहाँपर भी लब्धि के समान एक खण्ड और शेष के समान दूसराखण्ड, जैसा - २७ । ४ इनमें पहिला खण्ड किसी से गुणित और हार ६ से भागा निःशेष होगा तो दूसरे खण्ड ४ में गुल का निर्णय करते हैं- भाज्य ४ हार १ ये चौथे भाज्य हारके उलटे हैं, अब चौथे भाग्य को उसके गुण से गुण से २७ हुए इनमें क्षेप ३ घटाकर हार ४ का भाग देने से वहां ६ लब्धि मिली और विलोम विधि के अनुसार लब्धि ६ से हार ४ को गुणने से २४ हुए, इनमें क्षेप ३ जोड़ने से २७ हुए, इनमें भाग्य ९ का भाग देनेसे वही गुण ३ मिला। इस प्रकार तीसरे भाज्यका दूसरा खण्ड ४ लब्धि ६ से गुणित क्षेप ३ से युक्त हार ६ से भागा निःशेष होता है और लब्धि ३ आती है। तीसरे भाज्यका पहिला खण्ड २७ हार १ से भागनेसे निःशेष होता है और लब्धि ३ आती है। इसको पहिलो लब्धि ६ से गुणनेसे १८ हुए इन में दूसरे खण्डसे उत्पन्न हुई ३ लब्धि के जोड़ने से संपूर्ण लब्धि २१ हुई और गुण ६ हुआ ये धनक्षेप में सिद्ध हुए | इससे ‘उपान्तिमेन, स्वोर्ध्वे हृतेऽन्त्येन युत्ते तदन्त्यं त्यजेत् उपपन्न हुआ। अर्थात् उपान्तिम ६ से उसके ऊपरवाले ३ को गुणने से १८ हुए इनमें