पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/११८

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^कुट्टकः । ३१ शेत्र रहा उक्तवत् १४२ । ३१ ये दो खण्ड हुए इनका योग भाज्य के तुल्य है, पहिलाखण्ड १४२, हार ७१ लब्धि २ के घात १४२ के समान है इसकारण हार का भागदेने से नि:शेष होगा और दूसरे खण्ड ३१ से भागा हुआ यदि निःशेष हो तो जो लब्धि है वही गुण होगा । जैसा — ऋणक्षेप ६२ दूसरे खण्ड ३१ का भागदेने से नि:शेष होता है और २ लब्धि आती है तो यही गुण होगा क्षेप दूसरे खण्डका भागदेने से निःशेष नहीं होता इस कारण गुण के जानने के लिये दूसरा यत्न करते हैं-भाज्य के दो खण्डों में यदि दूसराखण्ड रूपके समान हो तो वह क्षेपके समान गुण के गुणने से क्षेप के समान होगा वहां यदि ऋणक्षेप हो तो उसके घटानेसे दूसरे खण्डका नाश होगा, जैसा- भाज्य हार = १ । यहां भाज्य के दो खण्ड ८ | १ दूसरा खण्ड १ क्षेप ६२ से गुणने से ६२ हुआ इस में क्षेप ६२ घटादेनेसे शून्य हुआ, और पहिला खण्ड ८ क्षेप ६२ से गुणने से ४१६ हुआ इसमें हार ४ का भाग देने से १२४ लब्धि आई । अथवा पहिले खण्ड ८ में हार ४ का भाग देने से २ लब्धि आई इसे क्षेपतुल्य गुण ६२ से गुणने से पहिली लब्धि हुई । यहां भाज्य में हारका भागदेने से यदि रूप शेष न रहै तो गुण का ज्ञान न होगा इसलिये भाज्यहारों के आपस में भागदेने से जहां रूप शेष हो उसी स्थान में क्षेप के तुल्य गुण होगा परंतु ऋणक्षेप में, जैसा - . भाज्य = १७३ हार =७१ क्षेप = ३, यहां दृढभाज्यहारों के परस्पर भागदेने से लब्धि और भिन्नभिन्न भाज्य हार होते हैं -- . Mange af

(१) भाज्य १७३ (२) भाज्य ७१ (३) भाज्य ३१ (४) भाज्य ह हार ३१ हार ई हार ४ २ यहां अन्त भाज्य के दो खण्ड ८ । १ और उक्तरीति से ऋणक्षेप में क्षेप ३ के समान गुण हुआ | अन्त्यब्ध २ क्षेप ३ से गुणने से ६ हुई इसमें द्वितीयखण्डोत्पन्न शून्यके समान लब्धि जोड़नेसे ६ लब्धिहुई |