पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/११३

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बीजगणिते- लाघवार्थ भाज्य हार और क्षेप अपवर्तित किये जाते हैं इससे ' भाज्यो हार:-' यह श्लोकार्ध उपपन्न हुआ । गुणगुणित भाज्य के समान एक "खण्ड, क्षेपके समान दूसरा खण्ड, हरसे भांगे हुए उन खण्डों का योग और हरसे भागा हुआ खण्डयोग, ये तुल्य होते हैं । जैसा गुणगुणित भाज्य १९०५ । क्षेप. ६५ । हर १६५ से भागे ५४२२१ = १९६५०६५५ इनका योग ११७९ यह भाज्य ११०५ क्षेप ६५ ११७० 1 । के योग ११७० हर १९५ से भागे हुए १९७६ के समान है । इसी प्रकार केवल भाज्य और भाजक परसे जैसी लब्धि है वैसेही उनमें अपवर्तन देने से आती है। इसलिय १५ इन खण्डों में १३ का अपवर्तन देने से इन का योग ३५ हुआ । अ- थवा इन खण्डों के योग 2704+F4 = 230५ में १३ का अपवर्तन देनेसे योग हुआ ई / गुण से गुणित इटक से अर्तित, अथवा इष्टाङ्क से अपवर्तित और गुण से गुणित भाज्य में अन्तर नहीं पड़ता तो यदि पहिले लिखे हुए खण्डों के योग में ११५८१६ अपव- र्तन देते हैं तो १९६५ पद इन खण्डों में भी अपवर्तन देना उचित है नहीं तो क्योंकर फलकी समता होगी। इसलिये भाग्य और हार के समान क्षेपक में भी अपवर्तन का अवश्यक है इससे येन हारौ न तेन क्षेप:-' यह श्लोक का उत्तरार्ध उपपन्न हुआ | 6. माज्य- - परस्परं भाजितयोर्ययोर्यः शेषस्तयोः स्यादपवर्तनं सः । तेनापवर्तेन विभाजितो यौ तो भाज्यहारी दृढसंज्ञको स्तः ॥ २७ ॥