पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/११२

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१०५ कुट्टकः । उपपत्ति- - - पर्तिभाज्य भाजकों पर से जैसी लब्धि आती है वैसेही किसी एक असे गुणेहुए अथवा अपवर्तन न दियेहुए भाज्य भाजकोंपर से याती है यह बात प्रसिद्ध है। प्रकृतमें किसी गुण से गुणा हुआ धन वा ऋण क्षेप से जुड़ा हुआ कल्पित भाज्य भाज्य होता है और भाजक यथास्थित रहता है इस प्रकार भाज्य के दोखण्ड होते हैं - गुण से गुण हुआ पहिला खण्ड, क्षेप दूसरा खण्ड, इन दोनों खण्डोंका योग भाज्यहै । भाज्य और भाजक में अपवर्तन देने से लब्धिमें विकार नहीं होता इसलिये जिसअङ्क से भाजक व्यपवर्तित हुआ है उसीसे खण्डद्वययोगरूप भाज्य भी अपवर्त्य ( अपवर्तनयोग्य ) है। वहां खण्डों का योग अपवर्तित अथवा अपवर्तित खण्डों का योग ये तुल्प होते हैं । जैसा - इन भाज्य भाजकों में तीन का अपवर्तन देनेसे हूँ ये अपवर्तित भाज्य भाजक हुए, अथवा ६।१८ ये भाज्य के खण्ड तीन के अपवर्तन देनेसे ३ | ६ हुए, इन खण्डौंका योग वही अपवर्तित भाज्य १ हुआ । इसीभांति भाज्यके दोसे ज्यादे खण्ड करके उनमें अपवर्तन दो और उन अपवर्तित खण्डों का योग करो तो भी वही अपवर्तित भाज्यहोगा। इसलिये भाजक के अपवर्तित होने से गुण से गुणाहुआ कल्पित भाज्य और क्षेप भी अपवर्त्य होता हैं । यद्यपि गुण के न जानने से गुणगुणित भाज्य भी अज्ञात है तो उसमें क्योंकर अपवर्तन होसकेगा तथापि कल्पितभाज्य में अपवर्तन देकर पश्चात् उसे गुण से गुण दो तो कल्पितभाज्यरूपी भाज्यखण्डही अपवर्तित होगा क्योंकि गुणे हुए में अपवर्तन देनेसे अथवा अपवर्तन दियेहुए को गुणने से कुछ विशेष नहीं होता, कल्पित भाज्य जिस गुण से गुणा हुआ भाज्यखण्ड होता है उसी से गुणा हुआ अपवर्तित भाज्यभी अपवर्तित भाज्यखण्ड होगा और अपवर्तित क्षेप दूसरा खण्ड, इस भाँति भाज्य हार और क्षेप अपवर्तितहों अथवा अपवर्तितहों तोभी गुण लब्धिमें विशेष नहीं होता। इसकारण