पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१०९

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बीजगणिते- । यहां रूपवर्ग २८९ में क८० वा २०० के तुल्य रूप घटाकर उक्तविधि से १० / ७ करणीखण्ड उत्पन्नहुए इन में छोटे करणीखण्ड को रूप मानकर कहे हुए प्रकार से ५ । २ करणीखण्ड हुए, इस भांति क १० क ५ क २ मूल हुआ । यह मूल शुद्ध है क्योंकि इसका वर्ग ' रू १७ क ४० क ८० क २००, होता है । यहाँ पहिली मूलकरणी १० और ७ हैं, इन में बड़ी करणी चतुर्गुण ४० हुई इसका घटायेहुए ' क ८० क २००' इन करणीखण्डों में अपवर्तन देने से २ | ५ क - रणीखण्ड लब्ध हुए और शेष विधिसे भी येही खण्ड आते हैं इसलिये यह मूल शुद्ध हैं। और जो ( २४ ) वें सूत्र के भाष्य में कह कि चौगुनी छोटी करणी का जिन वर्गस्थानीय करणीखण्डों में अपवर्तन लगै वे रूपवर्ग में घटाने के योग्य हैं सो उपलक्षण है इसीलिये यहां पर चौगुनी बड़ी करणी का शोधित करणीखण्डों में अपवर्तन दिया है । सोपपत्तिक करणीषड्विध समाप्त हुआ | दुर्गाप्रसादरचिते भाषाभाष्ये मिताक्षरे । वासनाभङ्गिसुभगं करणीषड्डिधं गतम् ॥