पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१०५

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६८ बीजगणिते- न शोध्ये | अन्यथा शोधने कृते मूलं नायातीत्य- 'उत्पत्स्यमानयैवं मूलकरण्यात्वया चतुर्मुराया। या सामपवर्त: स्यापतेस्ता विशोध्या: स्यु इति नियमे सत्यपि मूलग्रहणेऽग्रिमनियमाभावे मूलमसदित्यत्रोदाहरणमार्बयाई-अष्टा- विति । यत्र कृतौ वर्गे दशमी रूपैरुपेतं सहितम् 'पट् पञ्चाशत् षष्टिः इदं करणीत्रयं वर्तते तत्र वर्गे पदं किं स्या- दिति ब्रूहि || 7 6 अब 'उत्पत्स्यमानयैवं- इस नियम के करने पर भी जो साधते हैं उसमें अगिले नियम के विना मूल अशुद्ध होता है यह दिखलाने के लिये उदाहरण- जिस वर्ग में रूपदश से सहित करणी ॠाठ, करणी छुप्पन और करणी साठ हैं वहां क्या मूल होगा | यहां उक्तनियम के अनुसार दो करणीखण्ड घटाना चाहिये इसलिये रूपवर्ग १०० में क ५६ औ क ८ के समान रूप घटाने से शेष: ३६ बच्चा, इसका मूल ६ छाया, इसको रूप में जोड़ने और घटाने से १६ । ४ हुए, इनका आधा ८ | २ दुआ, ये करणीखण्ड हुए, इन में से बड़े करणीखण्ड को रूप मानकर वर्ग करने से ६४ हुआ, इसमें क ६० के तुल्य रूप घटा देनेसे ४ शेष रहा, इसका सूल २ हुआ, इसको रूप में जोड़ने और घटाने से १० १ ६ हुए, इन का आधा ५ । ३ हुआ, ये मूलकरणी हुई, इसमांति क. २ का ३ क ५. मूल हुआ, परंतु यह मूल अशुद्ध है क्योंकि चौगुनी छोटी करणी का शोधित क ८ क ५६ में अपवर्तन देनेसे १ और ७ ये खण्ड उत्पन्न हुए और शेष विधि से क ५ क ३ आती हैं इसलिये रूपवर्ग में ' क ८ क ५६, इन खण्डों को नहीं घटाना चाहिये || ८