पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१०४

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करणपडियम् । हुआ, इन में २ मूलकरणी और रूप कल्पना करने से, रूपका क ६४ हुआ, इस में शेष करणी ६० के तुझ्य रूप घटाने से ४ शेष बचा, इस का मूल २ हुआ, इस को रूप ८ में जोड़ने घटानें से १० और ६ हुए, इनका आधा ५ और ३ हुआ. इस प्रकार के २ क ३ क ५ ये मूलकरणी हुईं । परंतु यह मूल ठीक नहीं है क्योंकि इसका वर्ग रु १० क २४क ४० क ६० है | इसीलिये चतुर्गुण्या, यासामपवर्तः स्यःद्रूपकृतेस्ता विशोध्या: स्युः, यह विशेष कहा है । देखो यहां छोटी करणी २ है, यह चतुर्गुण करने से ८ हुई, इस का शोषित क ५२ क १२ में अपवर्तन नहीं लगता इस कारण मूल अशुद्ध है । यहां जो छोटी करणी को चौगुनी करके शोधित करणीखण्डों में अपवर्तन देना कहा है सो उपलक्षण है इसलिये कहीं चौगुनी बड़ी करणी का भी शोषित करणीखण्डों में देते हैं । जिस मूत्रकरणी को रूप मानकर और दो करणीखण्ड साधे जाते हैं वह महती अर्थात् बड़ी करणी है | उदाहरणम्- अष्टौषट्पञ्चाशत् षष्टिः करणीयं कृतौ यत्र । रूपैर्दशभिरुपेतं किं मूलं ब्रूहि तस्य स्यात् ॥ १६ ॥ न्यासः | रू १०८ क ५६क ६० / अत्राद्यखण्ड- इये 'क ८ क ५६ ' शोधिते उत्पन्नयाल्पया चतुर्ग- गया = तयोः खण्डयोरपवर्तनलब्धे खण्डे १ १७ परं शेष विधिता मूलकरण्यौ नोत्पद्येते अतः खण्डे