क्वचिच्चक्रं च कोशश्च क्वचिज्जीवगृहं स्थितम् ।
अस्मिंश्चक्रेस्थितोजीवःपुण्यापुण्यप्रदेशिताम् ॥११॥
कहीं चक्र है, कहीं कोषके आकार है, कहीं जीवका घर है ऐसे जीवका पुण्य और पाप इस चक्ररूपमें स्थित जानना ।।९१।।
प्राणांश्च सममारूढो देहे भ्रमति सर्वदा।
तंतुपंजरमध्यस्था यथा भ्रमति लूतिका ॥९२॥
वह जीव सब प्राणोंका आरोहण कर देहविषे सब काल भ्रमता है, जैसे सूतपिंजरके मध्यमें मकड़ी भ्रमती है ।।९२।।
यस्तमभ्यासते नित्यं तच्च तेनान्तरात्मना ।
न तस्य जायते मृत्युरिति सर्वागमोदितम् ॥१३॥
जो मनुष्य जीवगत मनके द्वारा तिस नित्य ब्रह्मका अभ्यास करता है तिसकी मृत्यु नहीं होती ऐसे सब शास्त्रमें प्रकाशित है ।।९३।।
नाभिरोजो गुदं शुक्रं शोणितं शंखकौ तथा ।
मूर्द्धा स कांडहृदयं प्राणस्यायतनं दश ॥९४॥
नाभि, ओज, गुदा, वीर्य, रक्त, दोनों कनपटी, मस्तक, कण्ठ और हृदय ये दश प्राणके स्थान हैं ॥९४।।
त्रिंशद्धस्तप्रमाणा तु विश्वोदरी द्वयाधिका।
एकहस्तप्रमाणा स्यात्कण्ठदेशस्यनाडिका ॥९५॥
बत्तीस हाथ प्रमाणवाली विश्वोदरी नाड़ी सर्व मनुष्योंके पेटमें स्थित है. एक हाथ प्रमाणवाली नाड़ी कंठदेशमें स्थित है ।।९५।।
दशहस्ता ततः पश्चादामाशये प्रकीर्तिता।
पच्यमानाशया ज्ञेया दशहस्ता ततः परम् ॥९६॥
तिसके पीछे दश हाथ प्रमाणवाली नाड़ी आमाशयमें है तिससे परे दश हाथ प्रमाणवाली नाड़ी पच्यमान आशयमें स्थित है ।।९६।।
पक्वाशयात्ततः पक्वाद्दशस्हस्ता प्रकीर्तिता।
एकहस्ता गुह्यदेशे शंखावर्ता त्रिनाडिका ॥९७॥
तिससे पर दश हाथ प्रमाणवाली नाड़ी पक्वाशयमें स्थित है,