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पृष्ठम्:नाडीपरीक्षा.djvu/१८

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१८
नाडीपरीक्षा


 वाम नासापुटके द्वारा चंद्रमण्डलमें प्राप्त और मूलाधारावधि सहस्रदलपर्यन्त जो इडा नाड़ी है तिसको पितृयान कहत हैं ।।८५।।

गुदस्य पृष्ठ मार्गेऽस्मिन्वीणादण्डस्य देहभृत् ।
दीर्धास्थिमूर्ध्नि पर्यन्तं ब्रह्मदण्डेति कथ्यते ॥८६॥

 इसी शरीरमें मूलाधारके पष्ठभागमें वीणादंडके समान स्थित मस्तकपर्यन्त ब्रह्मदंडा नाड़ी कही जाती है ।।८६।।

तस्यान्ते सुषिरं सूक्ष्मं ब्रह्मनाडीति सूरिभिः ।
इडापिंगलयोर्मध्ये सुषुम्ना सूक्ष्मरूपिणी ।
सर्वं प्रतिष्ठितं यस्मिन्सर्वगं सर्वतोमुखम् ॥८७॥

 तिस ब्रह्मदंडा नाड़ीके अंतमें एक महीन छिद्र है तिसको पंडित ब्रह्मनाड़ी कहते हैं इडा और पिगलाके मध्यमें सूक्ष्म रूपवाली सुषुम्ना नाड़ी है जिसमें सर्वरूप और सर्वव्यापी और सब तर्फको भूखवाला ब्रह्म प्रतिष्ठित है ।।८७॥

तस्या मध्यगताः सूर्यसोमाग्निपरमेश्वराः।
भूतलोका दिशः क्षेत्रं समुद्राः पर्वताः शिलाः॥८८॥

 सुषुम्ना नाड़ीके मध्यमें सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, परमेश्वर ये चार देव, पंचभूत, चौदह लोक, दशोदिशा, काशी आदि धर्मक्षेत्र, सात समुद्र, सात पर्वत ॥८८॥

द्वीपाश्च निम्नगा वेदाः शास्त्रविद्याकुलाक्षराः ।
स्वरमंत्रपुराणानि गुणाश्चैतानि सर्वशः॥८९॥

 सब द्वीप, नदी, सब वेद, मीमांसा आदि शास्त्रविद्या, ककार आदि अक्षर, अकार आदि स्वर, गायत्री आदि मंत्र, अठारह पुराण, तीनों गुण ।।८९॥

बीजजीवात्मकस्तेषां क्षेत्रज्ञः प्राणवायवः ।
सुषुम्नांतर्गतं विश्वं तस्मिन्सर्वं प्रतिष्ठितम् ॥९०॥

 महादादि जीवात्मक जीव, प्राण आदि पंच, नाग आदि पंच वायु ये सब स्थित हैं और सुषुम्ना नाड़ीके अंतर्गत ही संपूर्ण जगत है ९०॥