दक्षिणावर्तमें गमन करती है और तीसरी नाड़ी मध्यमें गमन करती है. इन तीनोंके द्वारा तुल्य गमन और आगमनवाला वायुमार्ग जानना॥७९॥
इडा च शंखचंद्राभा तस्या वामे व्यवस्थिता।
पिंगला सितरक्ताभा दक्षिणं पार्श्वमाश्रिता ॥८०॥
शंख और चंद्रमाके समान प्रकाशवाली इडा नाड़ी सुषुम्नाके वाम भागमें व्यवस्थित है, सफेद और लाल कांतिवाली पिंगला नाड़ी सुषुम्नाके दक्षिण भागमें व्यवस्थित है ॥८०॥
चन्द्रः सूर्यो मरुच्चैव त्रयस्तिसृष्ववस्थिताः ।
तथा रजस्तमः सत्त्वं रात्र्यहःकाल एव च ॥८१॥
चंद्रमा, सूर्य, वायु ये तीन इन तीनों नाडियोंमें व्यवस्थित हैं. रजोगुण, तमोगुण सत्त्वगुण, रात्रि, दिन काल ये भी युक्त जानने ॥८१॥
इडा दोषमयी प्रोक्ता पिंगला वह्निरूपिणी ।
वाग्वाग्नेयीसुषुम्ना च ब्रह्मद्वारपथानुगा ॥८२॥
इडा नाड़ी दोषोंवाली है, पिंगला नाड़ी अग्निरूपवाली है, सुषुम्ना नाड़ी वायु और अग्निरूपवाली है और ब्रह्मद्वारके मार्गमें गमन करती है ॥८२॥
पद्मकोषप्रतीकाशं सुषिरैश्च विभूषितम् ।
हृदयं तद्विजानीयाद्विश्वस्यायतनं हि तत् ॥८३॥
पद्म कोशके समान और छिद्रोंसे विभूषित हृदय जानना यह विश्वका स्थान है ॥८३॥
दक्षिणा पिंगला नाडी वह्निमंगलगोचरा ।
देवयानमिति ज्ञेया पुण्यकर्मानुसारिणी ॥८४॥
शरीरके दक्षिण भागमें पुण्यकर्मानुसारिणी और अग्निमंडलमें प्राप्त और मूलाधारसे दक्षिणावधि सहस्रदलपर्यन्त जो पिंगला नाड़ी है तहां देवयान नाम नाड़ी जानना ।।८४॥
इडा च वामनिःश्वासः सोममण्डलगोचरा।
पितृयानमिति ज्ञेया वाममाश्रित्य तिष्ठति ॥८५॥