सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:नाडीपरीक्षा.djvu/१६

विकिस्रोतः तः
पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१६
नाड़ीपरीक्षा


स्थित और वाम भागके मस्तक आदिसे लेकर पैरके अंगुठेके अंततक आश्रित है ॥७३॥

पूषा तु पिंगलापृष्ठे नीलजीमूतसन्निभा।
याम्यभागस्य नेत्रांता यावत्पादतलङ्गता ॥७४॥

 पिंगला नाडीके पृष्ठभागमें बादलके समान कांतिवाली और दाहिने पैरके तलुएसे लेके नेत्रपर्यन्त स्थित पूषा नाडी हैं ।।७४।।

यशस्विनी शंखवर्णा पिंगला पूर्वदेशगा।
गांधार्याश्च सरस्वत्या मध्यस्था शंखिनी मता ॥७५॥

 शंखके समान वर्णवाली और पिंगला नाड़ीसे पूर्व भागमें स्थित यशस्विनी नाड़ी है, गांधारी नाड़ी और सरस्वती नाड़ी के मध्यमें शंखिनी स्थित है ।।७५।।

सुवर्णवर्णा पादादिकर्णांता सव्यभागके।
पादांगुष्ठादिमूर्द्धान्ता याम्यभागे कुहुर्मता ॥७६॥

 यह सुवर्णके समान वर्णवाली और वाम पैरसे लेके कान पर्यंत है, दाहिने पैरके अंगुठेसे आदि लेके मस्तकपर्यन्त कुहुनाड़ी स्थित है।।७६।।

मुक्तिमार्गे सुषम्ना सा ब्रह्मरन्ध्रेति कीर्तिता।
अव्यक्तासाचविज्ञेयासुषम्नावैष्णवीस्थिता ॥७७॥

 सुषुम्ना नाड़ी मुक्तिमार्गमें स्थित है, शिरमें अव्यक्त रूप वैष्णवी नाड़ी स्थित है ॥७७॥

तासां तिस्रः प्रधानास्तु तिसृष्वेकोत्तमा मता।
इडा च पिंगला चैव सुषम्ना च तृतीयका ॥७८॥

 सब नाड़ियोंमें इडा पिंगला सुषुम्ना ये तीन नाड़ी प्रधान हैं और तीनोंमें एक सुषुम्ना नाड़ी प्रधान है ॥७८॥

तत्रैका वामतो याति द्वितीया दक्षिणे तथा।
मध्ये वायुपथं विद्यास्त्रिभिस्तुल्यंगतागतम् ॥७९॥

 तहां एक नाड़ी वामावर्तमें गमन करती है और दूसरी नाड़ी