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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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हिंदीटीकासहिता


 ये दश वायु सब नाड़ियोंमें विचरते हैं इन्होंमें प्राण आदि पांच वायु प्रधान कहे हैं ॥६७।।

तेषु मुख्यतमावेतौ प्राणापानौ नरोत्तमे।
प्राण एवै तयोर्मुख्यः सर्व प्राणभृतां सदा ॥६८॥

 और उन पांच वायुओंमेभी प्राण और अपान ये दोनों प्रधान और इन दोनों में भी सब प्राणियोंके सब कालविषे प्राणवायु प्रधान है ।।६८।।

शब्दग्रहाश्रुतौ नाडी रूपग्रहा च लोचने।
गंधग्रहा नासिकायां रसनायां रसावहा ॥६९॥

 कानमें नाड़ी शब्दको ग्रहण करती है, नेत्रमें नाड़ी रूपको ग्रहण करती है, नासिकामें नाड़ी गंधको ग्रहण करती है, जीभमें नाडी रसको ग्रहण करती है ।।६९।।

एवं त्वक्षु स्पर्शवहा शब्दकृद्ध दयान्मुखे।
मनो बुद्ध्यादिकं सर्वं हृदयेषु प्रतिष्ठितम् ॥७०॥

 इस प्रकार त्वचामें नाड़ी स्पर्शका ग्रहण करती है, हृदयसे मुखके द्वारा नाड़ी शब्दों को उच्चारण करती है, मन और बुद्धि आदि सब हृदय में प्रतिष्ठित है।।७०।।

गान्धारी हस्तिजिह्वाख्या सपूषालंबुषा मता।
यशस्विनी शंखिनी च कुहुःस्युःसप्तनाडयः॥७१॥

 गांधारी, हस्तिजिह्वा, पूषा, अलंबुषा, यशस्विनी, शंखिनी ये सात नाड़ी हैं ।।७१॥

इडापृष्ठे तु गान्धारी मयूरगलसन्निभा।
सव्यपादादिनैत्रांता गांधारी परिकीर्तिता ॥७२॥

 इडा नाडीके पृष्ठ भागमें गांधारी नाडी मोरके गलेके समान कांतिवाली है और (बायें) पैरसे लेके नेत्रपर्यन्त स्थित है ।।७२।।

हस्तिजिह्वोत्पलप्रेक्षा नाड़ी तस्याः पुरः स्थिता।
सव्यभागस्य मूर्द्धादिपादांगुष्ठांतमाश्रिता ॥७३॥

 हस्तिजिह्वा नाड़ी कमलके समान है और इडा नाड़ीके आगे