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पृष्ठम्:नाडीपरीक्षा.djvu/१४

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१४
नाडीपरीक्षा

 गांधारी और हस्तिजिह्वा ये नाड़ी फैलकर गमन करती हैं, अलंबुधा और यशस्विनी नाड़ी दाहिने अंगमें लगी हुई हैं ॥६१।।

कुहुश्च शंखिनी चैव वामाङ्गे चावलम्बिता ।
एतासु दशनाडीषु नानाकार्ये प्रसूतिका ॥६२॥

 कुहु और शंखिनी नाड़ी वाम अंगमें लगी हुई हैं, इन दश नाड़ियों- में प्रसूतिका नाड़ि अनेक कार्यमें कुशल है ॥६२।।

इडा च वामनासायां दक्षिणे पिंगला मता।
सुषुम्ना ब्रह्मरन्ध्रे चं गान्धारी वामचक्षुषि ॥६३॥

 नासिकाके वाम भागमें नाड़ी इडा स्थित है, और दक्षिण भागमें पिंगला नाडी स्थित है. शिरविषे सुषुम्ना नाडी स्थित है, बामनेत्रमें गांधारी नाड़ी स्थित है ॥६३।।

दक्षिणे हस्तिजिह्वा च पूषा कर्णेथ दक्षिणे।
वामे यशस्विनी ज्ञेया मुखे चालंबुषा मता ॥६४॥

 दाहिने नेत्रमें हस्तिजिह्वा नाड़ी स्थित है. दाहिने कानमें पूषा नाड़ी स्थित है. वाम कानमें यशस्विनी नाड़ी स्थित है. मुखमें अलंबुषा नाड़ी स्थित है ।।६४॥

कुहुश्च लिङ्गमूले स्याच्छङ्खिनी शिरसोपरि ।
एवं द्वारं समाश्रित्य तिष्ठंति दशनाडिकाः ॥६५॥

 लिंगकी जड़में कुहु नाड़ी स्थित है, शिरके ऊपर शंखिनी नाड़ी स्थित है, इस प्रकार द्वारोंके आश्रित होके दश नाड़ी स्थित हो रही हैं।॥६५

प्राणोऽपानः समानश्च उदानो व्यान एव च ।
नागः कूर्मोऽथ कृकरो देवदत्तो धनञ्जयः ॥६६॥

 प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, कृकर, देवदत्त, धनंजय ॥६६॥

एते नाडीषु सर्वासु चरन्ति दश वायवः ।
एतेषु वायवः पंचमुख्याः प्राणादयः स्मृताः ॥६७॥