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पृष्ठम्:नाडीपरीक्षा.djvu/१३

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१३
हिंदीटीकासहिता


देहे धमन्यो धन्यास्ताः पंचेन्द्रियगुणावहाः।
नाभिकंदस्थितास्तास्तुनाभौचक्रेप्रवेष्टिताः ॥५५॥

 शरीरमें सब धमनी नाड़ी धन्य हैं, पांचों इन्द्रियोंके गुणको वहती हैं, नाभिमूलमें स्थित हैं और नाभिचक्रमें प्रवेष्टित हो रही हैं।॥५५॥

इडा च पिङ्गला चैव सुषम्ना च सरस्वती।
वारुणी चैवपूषा च हस्तिजिह्वा यशस्विनी ॥५६॥

 इडा, पिंगला, सुषुम्ना, सरस्वती, वारुणी, पूषा, हस्तिजिह्वा यशस्विनी ॥५६॥

विश्वोदरी कुहुश्चैव शंखिनी च पयस्विनी।
अलंबुषा च गांधारी मुख्याश्चैताश्चतुर्दश ॥५७॥

 विश्वोदरी, कुहु, शंखिनी, पयस्विनी, अलंबुषा, गांधारी ये चौदह नाड़ी प्रधान हैं ।।५७॥

इडा च पिंगला चैव सुषम्ना च सरस्वती।
गांधारी हस्तिजिह्वा च कुहुःपूषायशस्विनी ॥५८॥

 इडा, पिंगला, सुषुम्ना, सरस्वती, गांधारी, हस्तिजिह्वा, कुहु, पूषा, यशस्विनी ॥५८॥

चारनालम्बुषा विश्वा शंखिनी च पयस्विनी।
एताः प्राणवहानाड्योजीवकोशे प्रतिष्ठिताः ॥५९॥

 चारना, अलंबुषा, विश्वा, शंखिनी, पयस्विनी ये नाड़ी प्राणोंको वहनेवाली जीवकोशमें स्थित हैं ।।५९।।

तत्र प्रधाना नाड्यस्तु दश वायुप्रवाहिकाः ।
इडा च पिंगला चैव सुषम्ना चोर्ध्वगामिनी ॥६०॥

 उनमें प्रधान दश नाड़ी वायुको वहती हैं, इडा पिंगला सुषुम्ना ये नाड़ी ऊपरको गमन करती हैं ।।६०॥

गांधारी हस्तिजिह्वा च प्रसारगमना स्थिता।
अलम्बुषा यशा चैव दक्षिणाङ्गे समन्विता ॥६१॥