एक हाथ प्रमाणवाली और शंखकी आंटीके सदृश नाड़ी गुदामें स्थित है ।।९७॥
भुक्तमामाशये तिष्ठेत्पच्यमानाशये पचेत् ।
पक्वं पक्वाशये तिष्ठेद्वह्निः पक्वाशयोपरि ॥९८॥
भोजन किया आमाशयमें स्थित रहता है और पच्यमाना शयमें जाके पकता है और पककर पक्वाशयमें ठहरता है. पक्वाशयके ऊपर अग्नि है ।।९८॥
पच्यमानाशये पक्वं मलपक्वाशये व्रजेत् ।
रसो भुक्तादिकानां च नाभिनाड्याकलेवरम् ।
सकलं याति मरुता नीयमानः स्वमाश्रयम् ॥१९॥
पच्यामानाशयमें पके हुए मलको पक्वाशयमें प्राप्त करता है आहार आदि रस नाभिकी नाड़ीके द्वारा वायुसे प्राप्त होके संपूर्ण शरीरमें गमन करते हैं ।।९९।।
नाभिस्तु कूर्मरूपःस्यान्महानाड्यष्टपाद्भवेत् ।।
चतस्रः पृष्ठदेशे स्युश्चतस्रः क्रोडदेशतः ॥१००॥
कछुएके आकार नाभि है तहां आठ पैरवाली महानाड़ी है पृष्ठभागमे चार नाड़ी और छाती देशमें चार नाड़ी स्थित हैं ।।१००।। इति हिंदीटीका सहित नाडीपरीक्षा संपूर्ण ।