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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/९८

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१७६५ ] बुडवो ८७ (दुखं दुःखसमुत्पादं सुखस्य चातिक्रमम्। आर्योषंगिक मार्ग खोपशमगामिनम् ॥१शl ) . ४६२-एतं खो सरणं क्षेमें एतं सरणमुत्तमं । एतं सरणमागम्म सन्वदुक्खा पभुञ्चति ॥ १३॥ (एतत् खलु शरणं क्षेत्रे एतत् शरणमुत्तमम् । एतत् शरणमागम्य सर्वदुखात् प्रमुच्यते ॥ १४ ॥ अनुवादश शुद्ध (=परमभ्नी ), धर्म (=वयज्ञान ) और संघ (=परम्हानियोंके अनुयायियोके समुदाय की शरण था, जो चारों आयेंत्यों को प्रशसे भीप्रकार देखता है। (वह चार मुख्य हैं–(१) , (२)दुखकी उत्पति, (३ ) दुखका अतिक्रमण, और ( , भूख झाशक ) आर्यअगिक मार्गी-जो क़ि सुपुत्रको शमनफरनैकी ओर ॐ जाता है, ये हैं मंगळप्रद शरण, ये हैं उसम शरण, इन शरणोंको पाकर ( मनुष्य ) द्वारे इखों छूट जाता है। चतवन आनन्द (येर )का अक्ष १६ ३-ड़भो पुरिसानब्को न सो सम्वत्य जायति । यथ सो जायती धीरो तं कुलं मुखमेधति ॥ १३

  • दुःख, उसका कारण उसका नाश, और नाशका उपायं---यह बुद्ध

द्वारा आविष्कृत चार उत्तम सच्चाइयाँ हैं। + आर्ष-अद्यागिक मार्ग हैं-डेक धारणा, लोक सकप, औझ बचन, श्रीक कमें, क जीविका, औौक खचौरा, जैक स्टूति, और ठीक । ध्यान