पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/८५

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७७ घरषद् [:२६ अनुवाद-(पुरुप) अपने ही अपना माछिक है, दूसरा कोन मायिक हो सकता है, अपनेको भली प्रकार सन कर छेने पर (वह एक) दुर्जेस आठिकको पाता है। जेवण महाकाछ ( उपासक ) १११–अत्तना'व कतं पापं अक्तजं अत्तसम्भवं । अभिमन्यति दुन्मेषं वजिरं ’स्ममयं मणिं ॥१॥ (आत्मनैव कृतं पापं आत्मनें आत्मसम्भवम् । अभिमथ्नाति दुर्मेधसं धनुमिवाश्ममयं मणिम् ॥५) अनुवाद अपनेसे जानाअपनेसे उत्प, अपने क्रिया प, (फरले मी ) डॅद्धिको पाषाणसय वग्नमणिी ( चोटी ) भाँति मन्थन (=पीडित ) करता है। १६२ यस्सचन्तदुस्सल्यं मानुवा सालमिवोततं । करोति सो तयतानं यथा 'नं इच्छती दिसो ॥६॥ (यस्याऽत्यन्तदौश्शील्यं मालुवा शालमिवाततम् । करोति स तथामानं यथैनमिच्छति द्विषः | ) अनुवाद--आखुवाच 'सै वेष्ठित शा( पृक्ष )ी ऑति जिसका द्रा चार फैला हुआ है, वह अपनेको वैसा ही कर छेता है, जैसा कि उसने खु चाहते हैं । • माझ्या एक ठता है, जो जिस पर बदती है८५ वर्षv पानके आरसे डहै तौल डाऊ है।