१ शt७ ॥ जरावस्मो [ ६९ ५॥ (अस्थ्नां नगरं कृतं मांसलोहितलेपनम् । यश्र जरा च मृणुश्व मानो प्रझयावहितः ।) अनुवाद--इङियोंका (एक) नगर (=गढ ) बताया गया है, जो मॉस और रक्तसे कंपा गया है, जिसमें जरा, और भ्रूयु, अभि ॐ ज्ञान और शाह छिपे हुये हैं। जैवन भाछिका देवी १११-जीरन्ति वे राजरथा सुचित्ता अथो सरीरम्पि जरं उपेति । सतं च धम्मो न जर् उपैति सन्तो ह वे सभि पवेदयन्ति ॥३॥ (जोऍन्ति वै शतरथाः सुचित्रकयशरीरमपि बरसुपेति। लतांच धर्मानजरामुपेति सन्तोहवैद्यः प्रवेक्ष्यन्ति। अनुवाद-शुचित्रित रालरथ भी पुराने ४ जाते हैं, और शरीर भी जराको प्राप्त होता है, (किंतु ) सवन धर्म (=पुण) जराको नहीं प्राप्त होता, सन्त जल सत्पुरुषके वामें ऐसी कहते हैं। जेतुबन ( छाछ ) उदायी ( पेर) ११२-अष्पसुतायं पुरिसो बलिवर्लोब जीरति । मंसानि तस्स वहन्ति पब्ला तस्स न बड्इति ॥७॥ (अल्पभृतोऽयं पुरुषो बलीवर्दे इव जीर्यति । मसानि तस्य बर्द्धन्ते प्रशा तस्य न बर्द्धते ।)
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