पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/७९

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६८] धम्मपदं [ १५५ अनुवाद–द्वेस्रो विचित्र शरीरको, जो माणसे चूक, भूछा, पीड़ित नाना सकवयोंसे चुका है, जिसकी स्थिति अनियत है। जैतवन उत्तरी (थेरी ) १४८–परिनिण्णमिदं रूपं रोगनिङ पभङ्गुरं । भिक्जती प्रतिसन्देहो मरणन्तं हि जीवितं ॥३॥ (परिजीर्णमिदं रूपं रोगनीडं प्रभंगुरम्। भिद्यते पूतिसन्देहो मरणन्तं हि जीवितम् ) "अनुवाद-यह रूप जीर्ण शीर्णरोगका ध, और भंगुर है, सब कर वेह भन्न होती है, जीवन मरणान् जो ठहरा। R अधिमान ( भिक्षु) ४४६ eन्यानिमानि अपत्यानि अलावूनेव सादे । कापोतकानि अदीनि तानि दिवान का रति ॥३४॥ ( यानीमन्यपथ्यन्यछाखूनीव शरदि । कापोतकान्यस्थीनि तानि दृष्ट्वा का रतिः ।) अनुवाद--रवं काली पष्य कीी भाँति ( फेंक दी गई ) या फबूतरोंकी सी (सफ़ेद रेगई) हड्डियोंको देखकर किस को इस (शरीरमें ) प्रेस होगा ? रूपनन्दा (थेरी ) १५०-आीनं नगरं कतं मंसलोहितलेपनं । यय जरा च मञ्चूच मानो मक्खो च श्रोहितो ॥१॥ चतवन