पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/७५

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१४ ॥ घस्मर्षे [ १०१४ होता है । कडुची वेदना, हानि, अंगका भंग होना, भारी बीमारी, (या) चित्तविक्षेप (पागल )को प्राप्त होता है। या राजासे खण्डको (प्राप्त होता है।), दारुण निन्दा, जाति वन्धुओंका विनाश, भोगोंका क्षय; अथवा उस घरको अति = पावक जलाता है, काया छोड़नेपर वह दुष्पॅद्धि नर्ममें डरपत्र होता है । बहुमतिक ( मिछ ) x% १- न नग्गचरिया न जटा न पद्मा नानासका थण्डिलसायिका वा । रजोवनल्यै उक्कुटिकम्पधानं सोचेन्ति मञ्चं अवितिएणक्खं ॥१३॥ (न नझचर्या न जटा न पंक नाऽनशनं स्थण्डिलशायिका वा । रजोजलीयं उकुटिकप्रधानं शोधयन्ति मर्य' अवितोणकक्षम् ॥१३॥ अनुवाद–जिव पुरुपकी आकांक्षायें समाप्त नहीं हो गई, उस मनुष्य T की शुद्धि, ग नंगे रहनेछ, म जटासे, न पंक ( रुपैठने ) से, न फाफा (=ठपवास ) करनेले, न की भूसिपर सोनेसे, न धूल रूपैटनेमे, न ठकईं बैठनेसे होती है। सन्तति ( मद्यमाय ) १४२-अलङ्कतो चेपि समं चरेय्य सन्तो दन्तो नियतो ब्रह्मचारी ।