पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/७३

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६२] धम्मपदं [ १०l% ( स वेतू नेरयसि आत्मानं कांस्यमुपहतं यथा। एष प्राप्तोऽसि निर्वाणं संरम्भस्ते न विद्यते ।) अनुवाद कठोर वचन च योछ, योजनेपर ( दूसरे भी वैसे ही ) तुम्हें योलेंगे, दुर्वचन दुःखदायक ( होते हैं ), ( योछनैसे ) यदळेमें तुम्हें दुण्ड मिलेगा । दूठा कसा जैसे निःशध्द रहता है, ( बैसे ) षट्टि तुम अपनेको (नि.शब्द सूक्त्रो ), तो तुमने निर्वाणको प्रक्रिया, तुम्हारे लिये कछह (=हिंसा ) महीं रही । आखेती ( पूर्वाराम ) विसाखा आदि ( उपासिकार्ये ) १३५–यया दण्डेन गोपालो गावो पाचेति गोचरं । एवं जरा च मुच्चू च आर् पार्वन्ति पाणिनं ॥॥ (यथा वंडेन गोपालो गा भाजयति गोचरम् । एवं जरा च मृत्युद्ययुः आजयतः प्राणिनाम् ॥॥ अनुवाद--जैसे स्वा छाठीसे गायोंको चरागाहमें से बाता है, वैसे ही सुझाषा और सृज्य प्राणियोंकी आयुको ठे जाते हैं । राजगृह ( वैणुषन ) अमगर ( भेत ) १३६-अप पापानि कम्पानि कां बालो न जुति । सेहि कपेहि दुम्पेधो अगिदचे 'तम्पति ॥८॥ (अथ पाणनि कर्माणि कुर्वन् बालो न बुध्यते । स्वैः कर्मभिः दुर्मेधा अग्निदग्ध इव तप्यते ॥८॥ ) अनुवाद-पाय फर्म करते वक्च सूड (पुरुप उसे ) नहीं खाता, पीछे