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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/६८

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१९ / पापघगो [५७ अनुवाद-"वह मेरे पास नहीं आयेगा"-पैसा ( सौच) पुष्प अवहेलना न करे। पानी की० । धीर थोडा थोडा संचय करते पुण्यको भर लेता है। तबन मधषन ( वणिक् ) १२ ३-वाणिजो ‘व भयं मरणं अप्पसत्थो महद्धनो । विसं जीवितुकामोव पापानि परिवर्जये ॥८॥ (वणिगिव भयं मार्ग” अल्पसाथं महाधनः। विषं जीवितुकाम इव पापानि परिवर्जयेत् ॥ ८ ॥ अनुवाद---योहे काठेि और महाधनवाया घनजारा जैसे भय्यु शस्तेको छोड़ देता है, ( अथवा ) जीनेकी इच्छावशा शुरूप जैसे विषक, (छोड देता है ) वैसे ही ( रूप ) पापों को छोड वै । वेणुबन १२ ४-पाणिम्हि चे दणो नास हय्य पाणिना विनं । नावणं विसमन्वेति नस्यि पार्षे अकुष्बतो ॥६॥ (पाणौ चेद् व्रणो न स्याद् हरैव पाणिनां विषम् । ला भणं विषमन्वेति, नास्ति पापं अकुर्वतः ॥ ९ ॥ अनुवाद–पद् िइयमें घाव न थे, वो हाथसे विषफो छे से (क्योंड्रि) घाव(=अग }-रहित ( शरीरमें ) विष नहीं लगता ( इसी प्रकार ) न करनेवाछेको पाप नहीं लगता ।