सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१५०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

२श1२] चिरयवर्णो [ १३९ जतवन बहुवसे भिक्षु ३१५-नगरं यथा पचन्तं गुत सन्तवाहिरं । एवं गोपेय अत्तानं स्खणे वे मा उपचगा। खणातीता हि सोचन्ति नियम्हि समष्पिता ॥१०॥ (नगरं यथा अत्यन्तं गुप्त' न्तर्याम् । एवं गोपयेदात्मानं क्षणं वै मा उपालिगाः। क्षणऽतीता हि शोचन्ति निरये समर्पिताः ॥१० ) अनुवाद-जैसे समान्तका मगर (ऋषद ) भीतर वाइरसे खूष शक्षित होता है, इसी प्रकार अपनेको रक्षित रखेक्षण भर भी न छोडे; क्षण चूछ जानैपर सरफमें पढकर शोक करना पडता है । बेतवन (बैमसाठ ) ३१६-अलज्जिता ये लज्जन्ति ललिता ये न करे । मिच्छदिविसमाना सत्ता गच्छन्ति दुर्गाति ॥११॥ (अळजिता थे ,जन्ते लजिता थे न लजन्ते। मिथ्यादृष्टि समादान खवागच्छन्ति दुर्गतिम् ॥१श) अनुवाद---अलोन( के काल में जो कब करते , और का ( के काम में जो कण नहीं करते, वह भी धारणावाने आण दुर्गतिको प्राप्त होते हैं। ३१७-अमये च भयदस्सिनो भये च अमयदस्सिनो । मिच्छदिक्रिसमादाना सत्ता गच्छन्ति दुर्गाति ॥१२॥