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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/११४

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१७६ ] कोषवणो | १०३ अनुवाद-सच बोले, ओोध न करे, आज भी माँगनेपर है, इन तीन वात्रो (मुरूप ) ठेवताओके पात्र जाता है। ओह्मण साकेत (=अयोध्या ) २२५–अहिंसका ये मुनयो निच्वं कायेन संवृता । ते यन्ति अच्चुतं ठानं यत्य गन्त्वा न सोचरे ॥५॥ (अहिंसका ये मुनयो नित्यं कार्थेन संवृताः। ते यन्ति स्वच्युतं स्थानं यत्र गत्वा न शोचन्ति ॥५॥ ) अनुवाद---को मुनि (छौग ) अहिक्षकसदा कायानें संयम करनेवाले हैं, वह ( ख ) अच्युत स्थान (=जिस स्थान पर थहुँच फिर गिरना भी होता )को आदा होते हैं, जहाँ जाकर फिर महीं शोक किया जाता । राजगृड ( गृध्रकूट ) राजगृइषीका पुत्र २२६-सवा जागरमानानं आहरत्तानुसिक्खिनं । निव्वाणं अविमुत्तानं अत्यं गच्छन्ति आसवा ॥६॥ ( सदा जाग्रतां अहोरात्रं अनुशिक्षमाणनम् । निर्वाणं अधिमुक्तानां अस्तं गच्छन्ति आनवः ॥६॥ अनुवाद–श्च सदा जागचा (=सचेत ) रखता है, रातबिंब ( उत्तम ) सीख सीखनेवाला होता है, और निर्माण ( भारत फर ) मुक हो गया है, उसके आस्रव (=चित मल ) अस्त हो जाते हैं ।