पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/६८

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अहै

  • कारण के । फल की इच्छा से रहित । छल

विना । हो, (अन्य ) शोक | करुणा । विकार | विषाद । सम्बोधन । निन्दा | दया | विस्मय | प्रशंसा || तिर्क । तिरस्कार | अहोबत, (अव्य.) दया | श्रम | कृपा | थका- वट । शोक प्रकट करने वाला सम्बोधन | अहोरात्र (न. ) दिन रात । न्हाय. (अन्य ) शीघ्र | तुरन्त | अहय, अहयाण, (गु.) निर्लज | अभिमानी । अहि, (त्रि.) मोटा | विषयी | बुद्धिमान् | कवि | श्रीक, ( पं. ) एक बौद्ध संन्यासी | आ ११ " (व्य.) (१) वर्णमाला का द्वितीय श्रर तथा स्वर है । ( २ ) जब केवल " श्रा का प्रयोग किया जाता है तब इसका अर्थ होता है - अनुमति । हॉ । सचमुच | यह अक्षर दया, वाक्य, समुच्चय, घोड़ा, सीमा, व्याप्ति, श्रवधि से और तक के अर्थ में भी प्रयुक्त किया जाता है। किन्तु जब “आ क्रिया अथवा संज्ञावाचक शब्दों के पूर्व लगाया जाता है, तब यह - समीप, सम्मुख, चारों ओर से श्रादि अर्थ को व्यक्त करता है । आ " वैदिक साहित्य में सप्तम्यन्त शब्द के पहले में और आदि अर्थव्यञ्जक होता है । श्रा, (पुं.) महादेव । लक्ष्मी । कथनं, (क्रि.) बड़ाई बवारना | डींग हाँकना | (त्रि.) कम्पयुक्त काँपता हुआ | लोभ को प्राप्त । थोड़ा कम्प युक्त ! आकयं, (क्रि.) किसी वस्तु को पवित्र कर डालना । 56 चतुर्वेदकोष | ६७. श्रांका आकर्ण, ( क्रि. ) सुनना। कान देना । कर (पुं. ) समूह । श्रेष्ठ | अच्छा | रत्नादि के निकलने का स्थान | खान | आकल, (क्रि. ) पकड़ना | धरना | विचा रना । देखना | बाँधना | रोकना | समर्पण करना । नापना | गिनना | कल्पः, ( पुं. ) भूषण | शृङ्गार | परिच्छेद | बीमारी | वृद्धि बढ़ती। आकल्य, (पुं. ) बीमारी | रोग | । (पुं.) कसौटी | चकमक पत्थर परसा जुआं | इन्द्रिय । श्रीकपक, (पुं.) काटना । घिसना कसौटी पर रखना। करणी, (बी.) ऊँचाई पर स्थित फूल, फल, पत्ती तोड़ने की लकड़ी । डण्डी । कि, (पुं. ) चुम्बक नाम अयस्कान्त पत्थर | खींचने वाला । आकस्मिक (श्रव्य ) अकस्मात् । सहसा हुआ । पहिले जो न सोचा विचारा अथवा देखा गया हो। आकांक्षा ( स्त्री. ) अभिलाषा | चाह | सम्बन्ध | अभिलाष काय, (पुं. ) निवास | घर | श्मशान का आग्न | र (पुं.) मूर्ति रूप । मन का अभिप्राय | कारगुती (स्त्री) अपने मन के भाव को गुप्त रखना | स्वरूप को छिपाना । कारण (क्रि. ) बुलाना । कालः, ठीक समय । बे ठीक समय । कालिक, (त्रि. ) बे फसल की वस्तु । शीघ्र नष्ट होने वाली । ( स्त्री. ) बिजली । आकाश, ( पुं. न. ) थकास | गगन | समान | पोला स्थान | पञ्चमृत अथवा तवों में से एक तत्त्व | सूर्य, चन्द्र तारायों के देदीप्यमान होने का स्थान | ब्रह्म छिद्र | शून्य