पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/६७

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अस्म चतुदोष । ६६ अस्मद् ( सर्व. ). आत्मवांची सर्वनाम अर्थात् मैं | हम | देहाभिमानी जीव । अस्मदीय, (त्रि. ) हमारा | अस्माकं, ( सर्व . ) हमारा । अस्मि, ( श्रव्य. ) मैं । अस्मिता, ( स्त्री. ) हर दर्शन को एक रूप समझना । श्रन, (न. ) कौना | सिर के केश | आँसू । दृष्टा और रक्त । श्र, (न. ) मांस । स्वैरिन्, (पुं . ) परतंत्र | पराधीन | हू (कि. ) मिल कर गाना बनाना | सङ्क- लन करना जाना । चमकना । अ (अव्य. ) प्रशंसा | फेंकना | रोकना | यु (त्रि.) । अहङ्कार, ( पुं. ) श्रभिमान | घमण्ड । अहत, (न. ) नया व अनाहत विना वोट के । अन, ( न. ) जो सदा धूमता रहता है । दिन । • हं, (सर्व. ) मैं || अभिमान | अहङ्कार घमण्ड । अहमहमिका ( स्री. ) अन्योन्यात्मस्तुति | आत्मश्लाघा आत्मप्रशंसा | हंपूर्विका (स्त्री.) आगे बढ़ बढ़ कर लड़ना अथवा पहले लड़ने के लिये परस्पर झगड़ना । हम्मत (स्त्री. ) विद्या अन्य में न्य के धर्म को दिखाने वाला | अज्ञान | हर्गण, (पं.) दिनों का समूह | तीस दिन का मास । हार्दिव, (न. ) प्रतिदिन । नित्य | अर्भुख, (पुं.) दिन का पहला भाग | प्रातःकाल । सबेरा । भोर आहे श्रहार्य, (पुं. ) पर्वत | पहा | जो चुरार्या न जाय । जो तोड़ा न जाय (त्रि. ) (पुं. ) साँप | वृत्र नामक दैत्य | अहस्कर, श्रहस्पति, (पुं.) सूर्य 1. दिवा- कर | दिनमाण | मदार का पौधा । ह, (चय. ) सम्बोधन | विस्मग्र | खेद । 1. सौसक | राहु । योगी | नीच | अश्लेपा नक्षत्र । दुष्ट मनुष्य | जल | पृथिवी | दुधार गौ। नाभि । बादल । हक ( पुं.) ध्रुव अन्धा सर्प | जो निर्दिष्ट संख्यक दिनों तक रहे। हा, ( स्त्री. ) शाल्मली वृक्ष | ह, (सी. ) चीनी । शकर | मेशृङ्गी | पौधा | (त्रि.) मन वच । कर्म से प्रि को पीड़ा न देना । शास्त्रविरुद्ध जीवों को पीड़ा न देना | (पुं. ) विन्णु | इन्द्र अत (पुं. ) शत्रु । जो हितैषी न हो । श्रपथ्य | श्रम । डिक, (पुं. ) सर्प पकड़ने वाला । 1 श्रदिविद्धिषु (पुं. ) गरुड | इन्द्र | मोर | नेवला । विष्णु । श्रफेन, (न. पुं.) जो सौंप के भाग के समान हो । अफीम | अहिर्बुध्न्य, (पुं.) शिव | चन्द्रमा विशेष | उत्तराभाद्रपद नक्षत्र | अभुज् (पुं . ) साँप खाने वाला | गरुड़ | मोर | नेवला | त (स्त्री.) पान की बेल | हीर, (पुं. ) ग्वाला । श्रीरण, ( सं . ) कुचलंड | दुमुखा साँप, इसको देखकर और साँप भाग जाते हैं । पर इसमें विप नहीं होता । अनुचः, (पुं. ) शत्रु | वैरी । हु (पुं.) सकी। व्याप्त अद्भुत (पुं.) जहां हवन नहीं किया गया। धर्म का साधन होने पर भी होमरहित वेदपाठ ।. ध्यानयोग | ब्रह्मयज्ञ | अनाहूत 1. ( (मि.) विना हेतु के बिना किसी