पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/४२

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चतुर्वेदीकोष | ४१ अप • कालिक बड़ा ऐसा व्यवहार होता और दैशिक भेद से वह दो प्रकार का होता है। परपक्षः, (पुं.) दूसरा पक्ष कृष्णपक्ष । अपररात्र, पुं. ) रात्रिशेष | रात का पिछला भाग रात का पिछला पहर । अरवम्, (..) बन्दविशेष | वैतालीय नामक छन्द | अपर वैराग्यम्, (न. ) वैराग्य विशेष । अपरस्परः, (नि.) क्रियासातत्य | काम का नैरन्तर्ग्य | सतत काम करना । अपरा, (स्त्री.) जटायु पश्चिम दिशा । विद्याविशेष | • अपरागः, (पुं. ) अप्रीति । द्वेप | अपराङ्गः, (पुं. ) गुणीभूत व्यङ्गय का भेद । अपराजितः, (पुं.) शिव विष्णु एक ऋषि का नाम । (नि.) दूर्वा । लता विशेष | जयन्तीवृश्च । ! अपराजिता, ( स्त्री. ) जया | उमा | जुड़ी नाम की लता । अपराद्धः, (त्र) अपराध अपराध करने वाला । अपराद्धपूषक, (त्रि.) बहु धनुर्धारी जिसका बाण लक्ष्य से च्युत हो । अपराधः, (पुं.) पातक पाप | गुनाह | भूल न करने योग्य काम करना । अपराधी, (त्रि.) कृतापराध | जिस ने अपराध किया हो । अपरान्तः, (त्रि. ) पाश्चात्य देश । पश्चिमी देश | समुद्र मध्यवर्ती देश ! अपराह्न (पुं.) दिन के तीन भागों का अन्तिम भाग । दिन का तीमरा भाग | दिन का शेप भाग | अपराह्नतनः, (त्रि. ) अपराल में होने वाली वस्तु । अपरिकलितः, ( त्रि.) ज्ञात ग्रदृष्ट | अपरिग्रहः, (पुं. ) संग्रह | पास कुछ न श्रप ! रखना। अस्वीकार परिग्रहहीन | अपरिच्छद, ( त्रि. ) दरिद्र । निर्धन अपरिच्छिन्न:, ( त्रि. ) परिच्छेदरहित | न. ) आनन्त्य | इयत्तारहित । परिसङ्ख्यानम्, ' सीम अपरिहार्यम्. (त्रि.) छोड़ने योग्य नहीं | अयाज्य | जो रोका न जाय | परे: (.) दूसरा दिन 1 परसों 1 अपरोक्ष, (त्रि.) प्रत्यक्ष 1 विषय और इन्द्रियों के संयोग से जो ज्ञान होता है । पर (स्त्री) पार्वती । हिमालय की कन्या | ( त्रि. ) पर्णरहित | पत्रशून्य | पर्या, (त्रि.) असमर्थ | सम्पूर्ण | शक्तिरहित । जो पूर्ण न हो । अपलम् ( न. ) कीलक । ( त्रि. ) मांस हीन | संन्यासी | (त्रि. ) परिच्छदरहित । अल (पुं. ) प्रेम अप छिपव सी बात को भी झूठ कहना | (न. ) वासगृह | रहने का घर अपवर्ग:, (पुं. ) त्याग मोक्ष कार्यों की सफलता । कर्म का फल । दुःखों का अत्यन्त नाश । अपवर्गगुरु (पुं.) सदाशिव | हरि | अपवर्जनम्, न. ) दान त्याग | मोक्ष | निर्जन । पवर्जितः, (त्रि.) परिहृत व्यक् अपवर्तनम्, (न. ) परिवर्त वक्र होना लौटना टेढ़ा करना। गणितशास्त्र में प्रसिद्ध भाज्य भाजक दोनों को किसी एक समान से बाँटना । संश्चिम करना अल्प करना। अपवाद, (पुं. ) निंदा | आज्ञा । प्रेम | विश्वास । विशेष नियम व्याकरण शास्त्रानुसार अपवाद शाख ।