पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/४१

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अप पचारः, (पुं. ) आहेत । चार | अपचारिणी, ( स्त्री. ) अपचार करनेवाली स्त्री | . चतुर्वेदीकोष । ४० आचरण | दुरा- व्यभिचारिणी । अपचारी, (त्रि. ) अपचार करनेवाला । अपचितम्, (त्रि. ) अति । पूजित हीन । बढ़ा हुआ । अपचितिः, ( स्त्री. १ पूजा आराधना | व्यय । निष्कृति । निस्तार । हानि । न्यूनता | घटाव | श्रपटान्तरम्, (त्रि. ) आसक्त | श्रव्यवहित । बीच रहित खुला हुआ । संसक्ल । लगा हुआ। फँसा हुआ । अपटी, ( स्त्री. ) छोटा वस्त्र काण्डपट क्रमात । कपड़े का पड़दा पटुः, (त्रि.) अचतुर । कार्य के अयोग्य | रोगी काम करने में असमर्थ । तर्पणम्, (न. ) रोग आदि में भोजन न करना । 1 अपत्यम्, (न. ) पुत्र कन्या अपत्यदा, ( स्त्री. ) गर्भ धारण करनेवाली ओषधि । वह किया जिस से गर्भ रहता है। अपत्यशत्रुः, ( पं . ) कुलीर। कर्कट केकड़ा नामक एक जन्तु । पत्र (पुं.) जिसके पत्ते न हों। करीर वृक्ष । ( त्रि. ) श्रङ्कुर । पत्रप, (त्रि.) लजाहीन । निर्लज । श्रपत्रपिष्णुः, (त्रि.) लञ्जाशील स्वभाव से लखा । अपथम्, (न. ) श्रमार्ग । कुत्सित मार्ग | निन्दित पथ । पन्था (पुं.) पथ मार्ग का अभाव | अपथ्यम्. (त्रि.) हितकर भोजन । रोगी के न खाने योग्य वस्तु । श्रपदस्थः, (त्रि.) स्त्रकर्मच्युत । पदच्युत अपदानम्, (न.) शोधन करना | साफ़ करना । अप अपदिशम् ( न. ) दो दिशाओं का मध्य | विदिक् | कोन | अपदिः, (त्रि.) किया हुआ । प्रयुक्त । पदेशः, ( पुं. ) लक्ष्य निशाना स्वरूप को आच्छादन करना । छल । बहाना । निमित्त | स्थान | अपध्वंसज ( पुं. ) वर्णसङ्कर । भिन्न भिन्न वर्षों के समागम से उत्पन्न सङ्कीर्ण वर्ण अपध्वस्त, (त्रि.) परित्यक्त । निन्दित । छोड़ा हुआ । विनष्ट | अपनयनम् ( न.) दूर करना | खण्डन करना हटाना । अपहरण स्थान परि वर्तन | अपनीत (त्रि.) विनीत हत हटायाहुआ। अपनेयः, (त्रि.) अपनयन करने योग्य | हटाने योग्य निरसनीय अपनोदन, (न. ) दूर लेजाना | हटाना। तोड़ देना । प्रतीकार करना । अपभ्रंश, (पुं. ) अपशब्द । श्रशास्त्रीय शब्द | असंस्कृत शब्द । ग्राम्यभाषा | अपमानम्, (न. ) श्रवज्ञा| निरादर | धना- दर तिरस्कार । अपमित्यक, (न.) ऋण | उधार | कर्ज | अपमृत्यु, (पु.) चपटमृत्यु | रोग के विना मरना अपघातजन्य मृत्यु अपयानम्, (न. ) निकलना । भागना | पलायन करना | अपर, (न. ) हाथी का पिछला भाग । (त्रि.) दूसरा अन्य | भिञ नवीन | ● । निकृष्ट कार्य सन्निकृष्ट । पश्चिम दिशा | अपरक्ल, ( त्रि. ) विरक्त । जो अनुकूल हट जाना | न हो अपरतिः, ( श्री. ) त्रिराग विरुद्ध भाव । परत्र (अ.) परलोक। पीछे दूसरेसमय । अपरत्वम्, (न. ) छोटाई के व्यवहार का कारण। जिस के द्वारा वह छोटा और यह