पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/३०

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अना चतुर्वेदकोष | २६ अर्यकम्, (न.) आर्यावर्त से भिन्न देश । अगुरु काठ । श्रनार्य देश में उत्पन्न । अनार्यजुष्टम् (त्रि. ) निन्दित आचार | अनार्यों का सेवित मार्ग | अनार्य तिलः, (पुं. ) भूनिम्ब | चिरायता | नविद्ध, (त्रि. ) अनभिभूत । अस्पृष्ट । न छुआ हुआ । अनाविलः, ( त्रि.) निर्मल | विमल | मल- रहित । अनावृत (त्रि. ) प्रथम । आवरणरहित । विना ढका हुआ | अनावृत्ति ( स्त्री. ) नहीं लौटना । अनावृष्टि, ( स्त्री. ) वर्षा का अभाव | उपद्रव विशेष । खेती को नाश करने वाला उपद्रव ईतिविशेष । अनाशकम्, (न. काम का अभाव । इच्छा ^ का न होना । श्रवाशकायनम्, (न. ) उपवासपरायण । उपनाम करने वाला । अनाशी (पुं.) अपरिच्छिन । अनाश्रितः, ( त्रि. ) फल की इच्छा न रखने घाला। जिसको आश्रय न हो । अश्वान्, (त्रि. ) भोजन न करने वाला | नासिकः ( त्रि. ) नासिकारहित । अनास्था (स्त्री.) अनादर | श्रद्धा | अनाहत, (न. ) नया कपड़ा । नहीं फटा हुआ कपड़ा । तन्त्रशास्त्र प्रसिद्ध हृदय स्थित द्वादश दल कमल शब्दविशेष • मध्यमा वाकूं। श्राघातरहित वस्तु । अनिकेत, ( त्रि. ) नियत निवास शून्य नियम से एक स्थान पर न रहने वाला । संन्यासी । श्रनिगी:, (त्रि.) ऋतु । कथित अनित्यः, (त्रि.) यक । विनाशी। नश्वर | व्यक्त | अनिभृतः, (त्रि. ) चपल । श्रविनीत | अनिमिष, ( पुं. ) स्पन्दनशून्य क्षेत्र | जिसकी अनि? आँखें बन्द न हों। देवता | मूली विष्णु । अनिमिषक्षेत्र, ( न. ) एक तीर्थ का नाम । नैमिषारण्य नामक क्षेत्र । 'अनिमिषाचार्य:, (पुं. ) गुरु | बृहस्पति | देवताओं के चाचार्य । अनिमेष, ( पुं. ) देवता । जिसके निमेष न हो । मछली । अनियतः, ( त्रि. ) अनैकान्तिक । अनित्य | विनाशी । अस्थायी अनियन्त्रितः, (त्रि.) उच्छृङ्खल | अनिय- मित । नियमविरुद्ध | अनिरुक्ला, (त्रि. ) वचनों के अगोचर | जो वचन से प्रकट न किया जाय । अनिरुद्ध: ( पुं.) प्रद्युम्न का पुत्र | कृष्ण का पौत्र । ऊषा का पति । मन के अधि छाता । पशु आदि को बाँधने की रस्सी । (त्रि. ) अप्रतिरुद्ध | चर | नहीं रुका हुआ । अनिरुद्धपथम्, ( न. ) आकाश | गगन । i (त्रि.) बिना रोक का मार्ग । अनिरुद्धभामिनी, (स्त्री.) स्वैरिणी | बाय की कन्या । ऊषा । अनिरोधः, (पुं.) प्रतिबन्ध | स्वतन्त्र | अनिर्देश्य, (त्रि.) निर्देश करने के अयोग्य | जो शब्दों के द्वारा प्रकाशित न किया जाय । परमेश्वर । अनिर्वचनीय, ( पुं. ) जो शब्द द्वारा प्रका- शित न हो । जिस वस्तु का लक्षण न किया जा सके । अनिर्विरः, (त्रि.) विपादरहित । निवेंद रहित । श्रनिर्चिएसः चेता, (त्रि.) अविरक्तचित्त । धीर। कभी न कभी सिद्ध होहीगा, शीघ्रता से क्या लाभ ऐसा समझने वाला । अनिल, (पुं. ) वायु । जिससे मनुष्य प्राण धारण करते हैं। स्वाती नक्षत्र इसका अधि छाता देवता वायु है। वसुभेद । अनिलक, ( पुं.) बहेड़ा का वृक्ष |