पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/२३

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चतुर्वेदीकोष | २२ श्र के श्रद्वयकारणम्, ( न. ) परब्रह्म । जगत् निमित्त और उपादान दोनों कारण । (पुं. ) वेदान्ती । बौद्ध । एक वस्तु की सत्ता माननेवाला । श्रद्वैतवादी । बौद्ध विशेष | द्वितीय (त्रि.) केवल | एक | उसके समान दूसरा नहीं। परमात्मी श्रेष्ठ | असमान | अद्वेट (त्रि. ) अद्वेषी । द्वेष न करनेवाला । हितकारी । 1₂ (त्रि.) स्वजातीय विज्ञातीय भेदशून्य | मैदविकलारहित । सिद्धान्त विशेष | वेदान्त सिद्धान्त | अद्वैतवादी, (पुं.) बुद्ध | (त्रि.) विवेकी ब्रह्म और आत्मा की एकता कहने वाला । श्रधःक्रिया, ( स्त्री. ) अपमान | तिरस्कार । अधःक्षिप्त (त्रि.) नीचे की ओर मुँह करके रखा गया द्रव्य अधःपुष्पी, ( स्त्री. ) एक पौधे का नाम । जिसके फूल नीचे की ओर होते हैं । अधनः, (त्रि. ) भार्या पुत्र भृत्य आदि ।। अवमः, (त्रि.) कुत्सित | निन्दित । ( पुं. ) जार। उपपतिविशेष | अधम, (त्रि.) ऋणकर्ता । ऋण लेनेवाला । कर्जेखोर | ऋणकर्ता । ः, (त्रि.) श्रम श्रथमा, ( स्त्री. ) नायिकाभेद । अमाङ्ग, (न. ) चरण । पाँच | पैर | पाद | अधर, (पुं. ) ऊपर या नीचे का श्रोठ । ( त्रि. ) पृथिवी से जो न मिला हुआ हो । नीचे । तल । श्रधरतः, ( श्र. ) नीचे की ओर धरमधु, ( न. ) अधर अधरामृत | श्रवरान्, ( श्र.) नीचे का भाग अधोभाग | अधरे, ( . ) नीचे की ओर । पश्चिम दिशा । अधरे:, (अ.) पर दिन परसों। आनेवाला परसों । दूसरा दिन । " अधि अधर्म, (त्रि. ) ब्रह्महत्या आदि निषिद्ध कर्मों से उत्पन्न पाप बेदनिषिद्ध कर्म । अनेक प्रकार के दुखः देनेवाले कर्म धर्म का विरोधी । अधर्मश (त्रि. ) धार्मिक धर्म न जानने वाला। धर्म को तुच्छ समझने वाला। अधर्मभित्र, (. पुं. ) कलियुग | (त्रि ) धार्मिक | मिथ्यावादी । अधश्चर, (पुं. ) निन्दित कर्मों में जिसकी रुचि हो । चोर आदि । नीचे की थोर जाने वाला । अधस्तात् (श्र.) नीचार्थक अव्यय । अधि, ( श्र.) अधिकार | ऐश्वर्य भाग | हिस्सा | अधिकम् (ग.) बहुत अनेक ज्यादा। विशेष | श्रधिकरणम् ( न. ) आधार कारक | कैती और कर्म किया का आश्रय | मीमांसा | अशय्या (स्त्री.) पृथिनीपर सोना | भूमिशयन | अधिक विद्याल, (पुं.) द्रव्य की अवस्था के भेद से संख्या का भेद करना। एक राशि को अनेक बनाना अथवा धनेक राशि को एक बढ़ाना | अधिकरणभिद्धान्त:, (पुं. ) सिद्धान्त वि शेष | जहां एक की सिद्धि से दूसरे की सिद्धि होती है, वह अधिकरण सिद्धान्त है अर्थात् जिस अर्थ के सिद्ध होते ही दूसरे प्रकरण की सिद्धि होती हो । अधिकर्तव्यम्, (न.) जो अधिकरण में उत्पन्न हो । अधिकर्मिक, (पुं. न. ) हाट का मालिक | बाजार का चौधरी । अधिकाङ्गम्, ( न. ) कवच आदि बाँधने की पट्टी | कमरकंस | (त्रि.) अधिक वाला। जिसके चङ्ग बढ़े हुए हो । अधिकारः, (पुं. ) फलस्वामित्व किसी काम करने की स्वाधीनता । पैतृकाधिकार । -