पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/१८८

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त्वद्वि चतुर्वेदीकोष १८६ | त्वद्विध, (त्रि. ) तुम्हारे ऐसा | त्वरा, ( स्त्री. ) जल्दी । फुर्ती। शीघ्रता । त्वष्टा, (पुं.) विश्वकर्मा । १२ आदित्यों में से एक आदित्य । बदई । चित्रा नक्षत्र । त्वाद्दश, (त्रि. ) तुम्हारा ऐसा | त्वाष्ट्र, (पुं.) विश्वकमी का पुत्र । वृत्रासुर । त्विष्, ( स्त्री. ) शोभा | कान्ति । प्रकाश । त्विषांपति, (पुं.) सूर्यदेव । त्सरु, ( पुं. ) तलवार की मूठ । कब्जा | त्सरुक, (त्रि.) तलवार पकड़ने या चलाने में चतुर । थ थ, (पुं. ) पहाड़ | बचाने वाला रोगभेद । भयचिह्न | भक्षण | ( न. ) मंगल | साहस । थुत्कार, (पुं.) थूकने का शब्द । थूथू, (श्र.) निन्दासूचक शब्द । थैथै, (अ.) नाच के समय मृदंग के बोल | द य, ( पुं. ) यह समास के पीछे श्राता है। देना । उत्पन्न करना । काटना नष्ट करना। पृथक् करना । भेट । पहाड़ । ( स्त्री. ) भार्य्या | गर्मी | पश्चात्ताप | दंश, (क्रि. ) डसना । काटना । मारना । दंश, (पुं. ) बनैली मक्खी | मर्म | गुप्त भाग | दोष ( रत्न का ) | दाँत । कवच । श्रङ्ग । दंशन, (न.) डसना डङ्क मारना । कवच पहने हुए । दंशित, (त्रि.) कवच पहने हुए । दंशेर, (पु.) हानिकारक । दंष्ट्रा, (स्त्री.) दाद | इंष्ट्रिन्, ( पुं. ) शूकर | साँप | कुत्ता आदि दाढ़ वाला । दकं, (न. ) जल | जैसे " द कोदर " दग्ध दक्षू, (कि. ) उगना । बढ़ना । करना | चोटिल करना । दक्ष, (त्रि.) निपुण पट्ट कार्यकुशल । " नाव्ये च दक्षा वयम् 1 दक्षकन्या, ( श्री. ) सती । दक्ष प्रजापति की कन्या | अश्विनी आदि नक्षत्र | दक्षिण, (पुं. ) नायक विशेष | मध्य देश के दक्षिण वाला देश । शरीर का दहिना भाग । सरल । दूमरे की इच्छानुसार चलने वाला उदार स्वभाव | + दक्षिणतस्, ( श्रव्य. ) दक्षिण दिशा या देश दक्षिणपूर्वा, ( स्त्री. ) अग्निकोण । दक्षिणमार्ग, (पुं. ) पितृमार्ग । मार्ग जिससे पितृलोक में जीव जाता है । तंत्र का विधानविशेष | दक्षिणस्थ, (पुं.) रथवान | सारथि | दक्षिणा, (स्त्री. ) यमराज की दिशा | यज्ञान्त में कर्मसमाप्ति के अर्थ दिया जाने वाला द्रव्य । यज्ञपत्नी । प्रतिष्ठा । रुचि प्रजापति की कन्या । दक्षिणाग्नि, (पुं) यज्ञीय श्रग्निभेद । दक्षिणाचार, (पं.) आचारविशेष | दक्षिणात्, ([अव्य. ) दक्खिन से । दक्षिणापथ, (पुं.) अवन्ती । दक्षिण दिशा का देश | दहिनी ओर का रास्ता | दक्षिणामूर्ति, ( पुं. ) शिव की मूर्ति विशेष | दक्षिणायन, (न.) कर्क संकान्ति से मकर राशि पर्यन्तं जब सूर्य जाते तब सूर्य का जो श्रयन बदलता है, उसे दक्षिणायन कहते हैं । इस अयन में सूर्य छः मास रहते हैं । दक्षिणावर्त्त, (त्रि.) दहिनी ओर घूमा हुआ। दक्षिण्य, (त्रि. ) दक्षिणा के योग्य दग्ध, (त्रि.) भरम किया हुआ जलाया हुआ ।