पृष्ठम्:अष्टाध्यायी (शिक्षापरिभाषादिसहिता).pdf/९७

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चतुर्थोऽध्यायः । (११) अदरक ( अररक ) एलाक पिङ्गल कृष्ण गोलन्द उलूक तितिक्ष भिषन ( भिषज् ) [ भिष्णज ] भडित भण्डित दल्भ चेकित चिकित्सित देवहू इन्द्रहू एकलु पिप्पलू वृह- दग्नि [ सुलोहिन् ] सुलाभिन् उक्थ कुटीगु ॥ इति गर्गादिः ॥ १४ ॥ १०९ अश्वादिभ्यः फञ् ४ | १ | ११०॥ अश्व अश्मन् शङ्ख शूद्रक विद पुट रोहिण खर्जूर ( खजूर ) [ खञ्जार वस्त ] पिजूल भडिल भण्डिल भडित भण्डित [ प्रकृत रामोद ] क्षान्त [ काश तीक्ष्ण गोलाङ्क अर्क स्वर स्फुट चक्र अविष्ठ ] पविन्द पवित्र गोमिन् श्याम धूम धूम्र वाग्मिन् निश्वानर कुट । शप आत्रेये । जन जड खड ग्रीष्म अर्हकित विशेष विशाल गिरि चपल चुप दासक वैल्य ( बैल्व ) प्राच्य [ धर्म्य ] आनहु॒ह्य । पुंसि जाते । अर्जुन [ महत ] सुमनस् दुर्मनस् मन ( मनस् ) [ मान्त ] ध्वन | आत्रेय भरद्वाजे । भरद्वाज आत्रेये | उत्स आतव कितव [ वद धन्य पाद ] शिव खदिर ॥ इत्यश्वादिः ॥ १५ ॥ १०९ शिवादिभ्योऽण् ॥ ४ | १ | ११२॥ शिव मोष्ठ मोष्ठिक चण्ड जम्भ भूरि दण्ड कुठार ककुभ् ( ककुभा ) अनभिम्लान कोहित सुख संधि मुनि ककुत्स्थ कोड कोहड कहुय कहय रोध कपिञ्जल ( कुपिञ्जल ) खञ्जन वतण्ड तृणकर्ण क्षीरहूद जल- हूद परिल [ पथिक ] पिष्ट हैहय [ पार्षिका ] गोपिकां कपिलिका जटिलिका वधिरिका मञ्जीरक [ मजिरक ] वृष्णिक खञ्जर खञ्जल [ कर्मार ] रेख लेख आलेखन विश्व- वण रवण वर्तनाक्ष ग्रीवाक्ष [ विटप पिटक ] विटाक तृक्षाक नभाक ऊर्णनाभ जर त्कारु [ पृथा उत्क्षेप ] पुरोहितिका सुरोहितिका सुरोहिका आर्यश्वेत (अर्यश्वेत ) सुपिष्ट मसुरकर्ण मयूरकर्ण [ खजुरकर्ण ] कदूरक तक्षन् ऋष्टिषेण गङ्गा विपाश यस्क लह्य द्रुह्य अयस्थूण तृणकर्ण ( तृण कर्ण ) पर्ण भलन्दन विरूपाक्ष भूमि हला सपत्नी । ब्यचो नद्याः ॥ त्रिवेणी त्रिवणं च ॥ इति शिवादिः । आकृतिगणः ॥ १६ ॥ ११० शुभ्रादिभ्यश्च ॥ ४ | १ | १२३ ॥ शुभ्र विष्ट पुर ( विष्टपुर ) ब्रह्मकृत शतदार शळाथल शलाकाभ्रू लेखाभ्रू ( लेखाभ्र ) विकंसा ( विकास ) रोहिणी रुहिणी धर्मिणी दिश् शालूक अजवस्ति शकन्धि विमातृ विधाव शुक विश देवतर शकुनि शुक्र उग्र ज्ञातल ( शतल ) बन्धकी सृरु. डु वित्रि अतिथि गोदन्त कुशाम्ब मकष्टु शाता- हर पवटुरिक सुनामन् । लक्ष्मणश्यामयोर्वासिष्ठे । गोधा कुकलास अणीव भवाहण भरत ( भारत ) भरम मृकण्ड कर्पूर इतर अन्यतर आलीढ सुदन्त सुदक्ष सुवक्षस् सुदामन् कटु तुद अकशाय कुमारिका कुठारिका किशोरिका अम्बिका जिह्माशिन् परिधि वायुदत्त शकल शलाका खडूर कुबेरिका अशोका गन्धपिगला खडोन्मत्ता अनुदृष्टिन् ( अनुदृष्टि ) जरतिन् बलोवर्दिन् विन बीज जीव श्वनू अश्मन् अश्व अजिर ॥ इति शुभ्रादिः ॥ आकृतिगणः ॥ १७ ॥