पृष्ठम्:अष्टाध्यायी (शिक्षापरिभाषादिसहिता).pdf/१०६

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( २० ) गणपाठः । पञ्चमोऽध्यायः । १४६ उगवादिभ्यो यत् ५ | १ | २ | गो हविस अक्षर विष बर्हिस् अष्टका स्खदा युग मेधा स्नुच् | नाभि नभं च । शुनः संप्रसारणं वा च दीर्घत्वं तत्संनियोगेन चान्तो- दात्तत्वम् । ऊधसोऽनङ् च । कूप खढ़ दर खर असुर अध्वन् ( अध्वन ) क्षर वेद बीज दीस ( दीप्त ) इति गवादिः ।। १ ।। १४६ विभाषा हविरपूपादिभ्य: ५|१|४|| अपूप तण्डुल अभ्युष ( अभ्यूष ) अभ्योष अवोष अभ्येष पृथुक ओदन सूप पूप किण्व प्रदीप मुसल कटक कर्णबेष्टक इर्गल अर्गल । अन्नविकारेभ्यश्च | यूप स्थूणा दीप अश्व पत्र ॥ इत्यपूपादिः ॥ २ ॥ १४७ असमासे निष्कादिभ्यः ५ | १ | २० || निष्क पण पाद माष वाहा द्रोण षष्टि | इति निष्कादिः ॥ ३ ॥ . १४९ गोठ्यचोऽसंख्यापरिमाणाश्वार्यत् ५ | १ | ३९ ॥ अश्व अदमन् गण ऊर्णा ( उर्म ) उमा भङ्गा क्षण (गङ्गा ) वर्षा वसु ॥ इत्यश्वादिः ॥ ४ ॥ १५० तद्धरति वहत्यावहति भाराद्वंशादिभ्यः ५ | १|५०|| वंश कुटज बल्वज मूल स्थूणा स्थूण अक्ष अश्मन् अव इलक्ष्ण इक्षु खड्डा ॥ इति वंशादिः ||५|| १५१ छेदादिभ्यो नित्यम् ५ | १ | ६४ || छेद भेद द्रोहदोहनति ( नर्त ) कर्ष तीर्थ संप्रयोग विप्रयोग प्रयोग विप्रकर्ष प्रेषण संपन्न विमश्न विकर्ष प्रकर्ष । विराग विरङ्गं च ॥ इति छेदादिः ॥ ६ ॥ १५१ दण्डादिभ्योयत् ५ | १ | ६६ ॥ दण्ड मुसल मधुपर्क कशा अर्थ मेव मेधा सुवर्ण उदक वध युग गुहा भाग इभ भङ्ग ॥ इति दण्डादिः ॥ ७ ॥ १५३ * महानाम्म्यादिभ्यः षष्ट्यन्तेभ्य उपसंख्यानम् ५ । १ । ९४॥ महानानी आदित्यव्रत गोदान ॥ इति महानाम्न्यादिः ॥ ८ ॥ १५३ * अवान्तरदीक्षादिभ्यो डिनिर्वक्तव्यः * ५ | १ | ९४ || अवान्तर दीक्षा तिलव्रत देवव्रत ॥ इत्यवान्तरदीक्षादिः ॥ ९ ॥ १५३ व्युष्टादिभ्योऽण् ५ | १ | ९७ ॥ व्युष्ट नित्य निष्क्रमण प्रवेशन उपसंक्रमण तीर्थ आस्तरण सयाम संघात अग्निपद पीलुमूल (पीलु मूल ) प्रवास उपवास ॥ इति व्युष्टादिः ॥ १० ॥ १५३ तस्मै प्रभवति संतापादिभ्यः ५ | १ | १०१ ।। संताप संनाह संग्राम संयोग संपराय संवेशन संपेष निष्पेष सर्ग निसर्ग विसर्ग उपसर्ग प्रवास उपवास संवात संवेष संवास संमोदन सक्तु । मांसौदनाद्विगृहीतादपि ॥ इति संतापादिः ॥ ११ ॥ १५३ * तदप्रकरणे उपवस्त्रादिग्य उपसंख्यानम् * ५।१।१०५।। उपवत्र माशिव चूडा श्रद्धा ॥ इत्युपवस्त्रादिः ॥ १२ ॥ .