पृष्ठम्:अष्टाध्यायी (शिक्षापरिभाषादिसहिता).pdf/१०४

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(१८) गणपाठः | २ तक्षशिला वत्सोद्धरण कैमेंदुर ग्रामणी छगल क्रोष्टुकर्ण सिंहकर्णचित निर काण्डधार पर्वत अवसान वर्वर कंस || इति तक्षशिलादिः ।। ७५ ।। १३७ शौनकादिभ्यश्छन्दसि ४ |३|१०६ ॥ शौनक वाज॑सनेय शार्ङ्गरव शापेय शाप्पेय खाडायन स्तम्भस्कन्ध देवदर्शन रज्जुभार रज्जुकण्ठ कटशाट कषाय तल दण्ड पुरुषांसक अश्वपेन ॥ इति शौनकादिः ॥ ७६ ॥ १३७ कुलालादिभ्यो वुञ् ४. | ३ |११८ ॥ कुलाल वरुड चण्डाल निषाद कर्मार सेना सिरिन्ध्र ( सिरिध ) सैरिन्ध्र देवराज पर्षत् ( परिषद् ) वधू मधु रुरु रुद्र अनडुह ब्रह्मन् कुम्भकार श्वपाक ॥ इति कुलालादिः ॥ ७७ ॥ १३८ रैवतिकादिभ्यश्छः ४ | ३ | १३१॥ रैवतिक स्वापिशि क्षैमवृद्धि गौरग्रीव ( गौरग्रीवि ) औदमेधि औदवापि वैजवापि ॥ इति रैवतिकादिः ॥ ७८ ॥ १३८ बिल्वादिभ्योऽण् ४ | ३ |१३६|| बिल्व वीहि काण्ड मुद्ग मसूर गोधूम इक्षु बेणु गवेधुका कर्पासी पाटली कर्कन्धु कुटीर ॥ इति बिल्वादिः ॥ ७९ ॥ १३८ पलाशादिभ्यो वा४ | ३ | १४१॥ पलाश खदिर शिंशपा स्पन्दन पूलाक करीर शिरीष यवास विकङ्कत || इति पलाशादिः ।। ८० ।। १३९ नित्यं वृद्धशरादिभ्यः ४ | ३ |१४४|| शरदर्भ मृदू ( मृQ ) कुटी तृण सोम वल्वज ॥ इति शरादिः ॥ ८१ ॥ १३९ तालादिभ्योऽण् ४ | ३|१५२ || तालानुपि । वार्हिण इन्द्रालिश इन्द्रादृश इन्द्रायुध चय श्यामाक पीयूक्षा || इति तालादिः ॥ ८२ ॥ १३९ प्राणिरजतादिभ्योऽञ् ४ | ३ | १५४ ॥रजत सीस लोह उदुम्बर नीप दारु रोहतक विभीतक पीतदारु तीवदारु त्रिकण्टक कण्टकार || इति रजतादिः॥ ८३ १३९ प्लक्षादिभ्योऽण् ४ | ३ | १६४||प्लक्ष न्यग्रोध अश्वत्थ इङ्गुदी शिनु रुरु . कक्षतु बृहती ॥ इति प्लक्षादिः ॥ ८४ ॥ १४० हरीतक्यादिभ्यश्च ४ | ३ | १६७ ॥ हरीतकी कोशातकी नखरञ्जनी शष्कण्डी दाडी दोडी श्वेतपाकी अर्जुनपाकी द्राक्षा काला ध्वाक्षा गभीका कण्टकारिक। पिप्पली चिम्पा ( चिश्चा ) शेफालिका || इति हरीतक्यादिः ॥ ८५ ।। १४० माशब्दादिभ्य उपसंख्यानम् ४ । ४ । १ ॥ माशब्दः नित्यशब्दः |कार्यशब्दः ॥ इति माशब्दादिः ॥ ८६ ॥ १४०* आहौ प्रभूतादिभ्यः * ४ १४ । १ ॥ प्रभूत पर्याप्त || इति प्रभू- तादिः ॥ ८७ ।। १४० * पृच्छतौ सुनातादिभ्यः ऋ४|४|१॥ सुस्नात सुखरात्रि सुखशयन ॥ इति सुनातादिः ॥ ८८ ।।