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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
|
सारङ्गो न लतागृहेषु |
४० |
१९
|
साहीणेसुन रच्चसि |
८५ |
७७
|
सिंहः करोति विक्रम |
२९ |
३९
|
सिंहः शिशुरपि निपतति |
२५ |
८
|
सिंहस्यान्योक्तयो ज्ञेया |
२५ |
५
|
सिंहिकासुतसंत्रस्तः |
४१ |
२५
|
सिक्खेसि गयं सिक्खेसि |
६२ |
८४
|
सिद्धयेऽस्तु महावीर |
९३ |
४
|
सिद्धिश्रिया किं निहिताः |
७६ |
१
|
सिन्धुस्तरङ्गैरुपलाल्य |
९१ |
४८
|
सुखयसि तृषोत्ताम्य- |
१९ |
१५७
|
सुजन भो सुतरां च |
७६ |
५
|
सुदुःस्थितः स्थूल |
३३ |
६८
|
सुधाकरकरस्पर्शात् |
८९ |
२९
|
सुरतरुकुसुमे मधु |
७९ |
२९
|
सुवर्णवर्णेन वृणीष्व गौरवं |
११७ |
८३
|
सूरिश्रीविजयानन्द |
२ |
१६
|
सूरीशविजयानन्दपद्मं |
५४ |
२१
|
सूरोऽसि परदलभाजणो |
३७ |
१००
|
सूर्यस्यान्योक्तयः पूर्व |
४ |
३१
|
सेयं स्थली नवतृणाङ्कुर |
४० |
२३
|
सेवितं साधु निःस्फारं |
१४२ |
५
|
सोऽपूर्वो रसनाविपर्यय |
८० |
४२
|
सोमकान्तो मणिः स्वच्छः |
८८ |
२७
|
सोलकलासंपुण्णो |
११ |
९९
|
सो सद्दो धवलत्तणं |
७८ |
९९
|
सोसन्न गओगओ |
१०० |
६३
|
सौभाग्यं कुसुमावलीषु |
११७ |
८०
|
सौरभ्यगर्भमकरन्द |
११९ |
९३
|
सौवर्णानि सरोजानि |
१२३ |
१२२
|
संकेतं मधुपावलीविरचितं |
११४ |
५७
|
संख्येया न भवन्ति |
९७ |
३९
|
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
|
संतप्तायसि संस्थितस्य |
९४ |
|
संप्रति न कल्पतरवो |
१७ |
|
संवर्धितो मधुरमि- |
१४५ |
|
स्तोकाम्भःपरिवर्तित |
१०३ |
|
स्तोष्ये श्रीविजयानन्द |
२५ |
|
स्त्रैणभूषणमणेः कमलायाः |
१४ |
१
|
स्थलीना दग्धानां |
३८ |
|
स्थानं कल्पतरोः सुधा |
९९ |
|
स्थित्वा क्षणं विततपक्षति |
५५ |
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स्नेहं विमुच्य सहसा खल |
१३७ |
२
|
स्पर्धन्तां सुखमेव |
१५३ |
|
स्पृशति शीतकरो जघन |
१४६ |
|
स्फटिकविमलं पीत्वा वापी |
७२ |
१६
|
स्फटिकस्य गुणो योऽसौ |
८९ |
२
|
स्फारकासारसाधूक्तिः |
९३ |
१
|
स्फुराः स्फटाः सप्त विभान्ति |
१ |
|
स्मरसि सरसि वीची |
५६ |
४
|
स्रग्दाम मूर्द्धनि निधिहि |
१४५ |
३
|
स्वचित्तकल्पितो गर्वः |
७५ |
१८
|
स्वच्छन्दोच्छलदच्छ- |
१०२ |
८०
|
स्वच्छन्दं दलय द्रुमान् |
३६ |
९३
|
स्वच्छन्दं मन्दराद्रि |
९९ |
५१
|
स्वच्छन्दं हरिणेन |
४० |
२२
|
स्वच्छं सज्जनचित्तवत् |
९४ |
१५
|
स्वयमफलवान्नेदं छेदं |
१३४ |
२१०
|
स्वर्णैः स्कन्धपरिग्रहो |
२४ |
१९९
|
स्वल्पस्नायुवसावशेष |
४६ |
६०
|
स्वस्त्यस्तु विद्रुमवनाय |
९५ |
२८
|
स्वामोदवासितसमग्र |
८० |
४०
|
हरिभामिनि सिन्धुसंभवे |
१४ |
११४
|
हरमुकुटे सुरतटिनी |
८ |
६३
|
हरिरलसविलोचन |
२७ |
२०
|
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